स्वास्थ्य सम्बन्धी गिलोय के फायदे और नुकसान की संभावनाएं

अमृत के समान शारीरिक दोषों को दूर करने वाली, एक जड़ी बूटी जो अधिकांश जंगलों और झाड़ियों में पाई जाती है, जिसकी स्वास्थ सम्बन्धी फायदों की एक विस्तृत श्रंखला है – हम “गिलोय” (Giloy) के बारे में बात कर रहे हैं। हाल के वर्षों में जब लोगों ने रोग प्रतिरोधक ...

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Brijesh Yadav

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अमृत के समान शारीरिक दोषों को दूर करने वाली, एक जड़ी बूटी जो अधिकांश जंगलों और झाड़ियों में पाई जाती है, जिसकी स्वास्थ सम्बन्धी फायदों की एक विस्तृत श्रंखला है – हम “गिलोय” (Giloy) के बारे में बात कर रहे हैं।

हाल के वर्षों में जब लोगों ने रोग प्रतिरोधक छमता के महत्व को पहचाना तो एक दिव्य औषधि गिलोय की तरफ सभी का ध्यान केंद्रित हुआ। हालाँकि गिलोय के सेहत सम्बन्धी फायदों के लिए इस्तमाल किया जाना कोई नई बात नहीं है इसका उपयोग प्रचीन समय से ही एक स्वास्थ्य वर्धक बूटी के रूप में होता आया है।

हालाँकि इसकी अधिक संभावना है की कुछ लोग गिलोय के फायदे और नुकसान को लेकर विस्तृत जानकारी से परिपूर्ण ना हों, साथ ही इसकी पहचान और उपयोग के बारे में भी कुछ खास मालूमात ना हो। इसलिए चलिए गिलोय से सम्बन्धित इन सभी पक्षों को विस्तार पूर्वक समझते हैं।

गिलोय की पहचान

गिलोय की पहचान करना कुछ लोगों के लिए थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है लेकिन यह इतना भी मुश्किल नहीं है। गिलोय एक प्रकार की बेल है जो पेड़ों, दीवालों का सहारा लेकर अपना प्रसार करती है। इसका पत्ता पान के पौधे के पत्ते के समान आकर का नजर आता है जिसका रंग गाढ़ा हरा होता है। इसके फूलों का रंग पीला होता है और इसपर लगाने वाले फल मटर के दाने जैसे प्रतीत होते हैं। सेहत सम्बन्धी लाभों के लिए अक्सर गिलोय के लताओं का इस्तेमाल किया जाता है जिसका स्वाद थोड़ा कड़वा होता है इसलिए सेवन के बाद कुछ लोगों को मतली और उलटी हो सकती है।

आयुर्वेद में गिलोय को अमृतवल्ली, अमृता, नाम से जाना जाता है संभवतः गिलोय के फायदों की एक वस्तृत श्रंखला को देखते हुए ही आयुर्वेद में इसे अमृता नाम से सम्बोधित किया गया होगा। हालाँकि इसको गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया (Tinospora Cordifolia) है जो की मेनिस्पर्मेसी वनस्पति परिवार से सम्बन्धित है।

ऐसा माना जाता है की गिलोय की बेल जिस भी पेड़ पर चढ़ती है वह उस पेड़ के गुणों को अपने अंदर समाहित कर लेती है इस दृष्टि से नीम के पेड़ पर फैली हुई गिलोय को सबसे सर्वोत्तम माना जाता है।

स्वास्थ्य सम्बन्धी गिलोय के फायदे

स्वास्थ्य सम्बन्धी गिलोय के लाभों की एक विस्तृत श्रंखला देखी जा सकती है क्योकि इसमें भरपूर पोषक तत्व पाए जाते हैं जिसमें खनिज, विटामिन, एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण आदि भी शामिल हैं। गिलोय पौधे के प्रत्येक भाग – जड़ें, तना और पत्तियां का इस्तेमाल एक स्वास्थ्यवर्धक के रूप में किया जा सकता है।

औषधीय गुण से समृद्ध

गिलोय के पौधे के प्रत्येक भाग जैसे तना और पत्तों में पोषक तत्वों की भिन्नता हो सकती है, इसलिए तना और पत्तों के पोषक तत्वों को अलग-अलग निम्नलिखित दर्शाया गया है।1

100 ग्राम गिलोय (टीनोस्पोरा कार्डिफोलिया) के पत्तों के विश्लेषण से प्राप्त नतीजे:-

ताजानिर्जलित
कार्बोहाइड्रेट (g)3.347.53
प्रोटीन (g)2.305.23
फाइबर (g)11.32152.295
आयरन (mg)5.8722.55
कैल्शियम (mg)85.247210
विटामिन सी (mg)5616
बीटा कैरोटीन (μg)303.7428.5
ऊर्जा88.64240
पॉलीफेनोल्स (mg)4.812.2
फ्लेवेनॉइड्स (mg)6.7618.28
एंटी-रेडिकल गतिविधियाँ11.07%19.75%

गिलोय के तनों के विश्लेषण से प्राप्त नतीजे:-

क्रूड प्रोटीन7.74%
कच्चा फाइबर56.42%
सेलूलोज़23.02%
कैल्शियम102.23 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम)
फास्फोरस24.81 पीपीएम
आयरन26.058 पीपीएम
जिंक7.342 पीपीएम
मैंगनीज12.242 पीपीएम

ध्यान देने वाली बात यह है की गिलोय में पाए जाने वाले पोषक तत्वों में भिन्नता हो सकती है जो इसके पनपने के स्थान, और परिस्थिति पर निर्भर करता है।

प्रतिरक्षा प्रणाली की मजबूती

प्रतिदिन गिलोय के जूस या पाउडर का सेवन शारीरिक जीवन शक्ति व रोग प्रतिरोधक क्षमता में विकास कर सकती है जिससे विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाव करने में मदत मिल सकती है। क्योकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट और सूजनरोधी गुणों के अतिरिक्त महत्वपूर्ण खनिज पाए जाते हैं जो कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव क्षति से बचाने में मदद कर सकते हैं और बैक्टीरिया व अन्य रोगजनकों से बचा सकते हैं।

इसके अलावां गिलोय काढ़े का नियमित सेवन हमारे शरीर को डिटॉक्सीफाई करने में मदत कर सकता है और शरीर को अंदर से साफ करने में मदत कर सकता है जिससे वजन कम करने, ऊर्जा बढ़ने, त्वचा स्वास्थ्य, पाचन में सुधार, आदि कई लाभों को महसूस किया जा सकता है।

बुखार से राहत

गिलोय में पाए जाने वाले ज्वरनाशक, एंटीऑक्सीडेंट, और सूजनरोधी गुण बाहरी और अंदुरुनी संक्रमण से रक्षा कर सकते हैं, यह मैक्रोफेज कोशिकाओं की कार्य कुशलता को बढ़ा सकता है जिससे रोगों से जल्दी निजाद पाने में मदत मिल सकती हैं जिसके कारण रोगों द्वारा उत्त्पन होने वाले लक्षण जैसे बुखार में बहुत जल्द कमी आ सकती  है।

इसके अतिरिक्त गिलोय के काढ़े का डेंगू रोग के दौरान सेवन करने से इसके लक्षणों से तेजी से आराम पाया जा सकता है, जिसके कारण डेंगू बुखार में कमी दर्ज किया जा सकता है और प्लेटलेट काउंट की संख्या में आई कमी में सुधार हो सकता है।

मधुमेह में प्रभावी

गिलोय के तने और जड़ के अर्क का सेवन करना मधुमेह में फायदेमंद हो सकता है क्योकि इसमें एल्कलॉइड, टैनिन, फ्लेवोनोइड और स्टेरॉयड जैसे विभिन्न यौगिक होते हैं जो मधुमेह के प्रभावों को कम करने में योगदान दे सकते हैं और शरीर में इंसुलिन के स्राव को जारी रखने में मदत कर सकते हैं। तने में पाए जाने वाले कुछ एल्कलॉइड इंसुलिन की नकल करते हैं और शरीर में इंसुलिन जारी करने में मदद कर सकते हैं।2

इसके अतिरिक्त यह शरीर की एंटीऑक्सीडेंट छमता को बढ़ने में मदत कर सकता है जिसके कारण भोजन करने के बाद रक्त शर्करा बढ़ाने वाले एंजाइमों को रोका जा सकता है।

एक अध्ययन में पाया गया कि गिलोय के तने का अर्क द्वारा पानी, इथेनॉल और मेथनॉल का उपयोग करके निकाले गए EAT कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ा दिया, इसका अर्थ है की अगर कोशिकाएं अधिक ग्लूकोज को अवशोषित करती हैं, तो इससे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा में कमी आ सकती है और मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है।3

कैंसर पर प्रभाव सकारात्मक

गिलोय या गुडुची का अर्क कैंसर जैसी गंभीर समस्या पर सकारात्मक प्रभाव दिखा सकता है और इसके रोकथाम में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। एक अध्ययन में पाया गया की गिलोय के अर्क ने मानव स्तन कैंसर की कोशिकाओं के खिलाफ उल्लेखनीय और सकारात्मक प्रदर्शन किया, जबकि सामान्य एपिथीलियम कोशिकाओं पर इसके प्रभाव समान्य या ना के बराबर थे।4

एक अन्य शोध इस ओर संकेत करता है की गिलोय से प्राप्त अल्कोहलिक अर्क मैक्रोफेज (एक प्रकार की स्वेत रक्त कोशिका) की कार्य कुशलता को विकसित करने में मदत कर सकता है जिससे ट्यूमर कोशिकाओं के खिलाफ इसके प्रभाव देखने को मिल सकते हैं, जो की गिलोय के एंटी-ट्यूमर गुण दर्शाता है।5

हालाँकि कैंसर जैसी गंभीर समस्या के खिलाफ गिलोय के प्रभाव पर आशंकाएं अभी सांत नहीं हुई हैं इसलिए अन्य नविन और विस्तृत शोध की जरूरत है।

पाचन तंत्र की कार्यक्षमता में सुधार

गिलोय या गुडूची में मौजूद सूजन-रोधी, एंटीऑक्सीडेंट और प्रीबायोटिक गुण पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद हो सकते हैं जिससे यह पेट सम्बन्धी समस्याओं से निपटने में लाभकारी हो सकता है। क्योंकि इसके सूजन-रोधी गुण जठरांत्र मार्ग (gastrointestinal tract) में सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं, इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट पाचन तंत्र को ऑक्सीडेटिव तनाव और मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद कर सकते हैं और प्रीबायोटिक गुण आंत में पाए जाने वाले फायदेमंद बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा दे सकतें हैं।

त्वचा के लिए फायदेमंद

गिलोय त्वचा सम्बन्धी समस्याओं में भी लाभदायक हो सकता है। इसमें मौजूद सूजन-रोधी गुण एक्जिमा, सोरायसिस या मुँहासे जैसी स्थितियों के कारण होने वाली त्वचा की सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं। ऑक्सीडेटिव तनाव के कारण त्वचा की उम्र और नुक़सान की संभावना बढ़ जाती है लेकिन गिलोय में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-एजिंग गुण इस प्रकिरिया को धीमा कर सकते हैं।6

इसके अतिरिक्त गिलोय के इम्यूनोमॉड्यूलेटरी प्रभाव प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बना सकते हैं जो त्वचा को लाभ पहुंचा सकते हैं।

श्वसन समस्याओं से राहत

गिलोय का इस्तेमाल श्वसन समस्याओं जैसे पुरानी खांसी (कासा) और अस्थमा (स्वसा) से राहत पाने में किया जा सकता है, इन स्थितियों में गिलोय के उपयोग का वर्णन आयुर्वेद के विभिन्न ग्रंथों में भी मिलता है।

एक अध्ययन के अनुसार, गिलोय के अर्क में एंटी-एलर्जी और ब्रोन्कोडायलेटर गुणों के कारण इसके इस्तेमाल करने से एलर्जिक राइनाइटिस से पीड़ित लोगों ने इसके लक्षणों जैसे जैसे बार बार छींकने आना, नाक से स्राव आना, नाक की रुकावट, नाक की खुजली आदि से पूरी तरह राहत महसूस किया।7

गिलोय के नुकसान और सावधानियां

गिलोय का इस्तेमाल कुछ लोगों के लिए नुकसानदायक हो सकता है, इसलिए इसके उपयोग करने में विशेष सावधानियाँ बरतने की जरूरत होती है, और डॉक्टरी परामर्श की आवश्यकता है।

एलर्जी:- कुछ लोगों को गिलोय से एलेर्जी हो सकती है और उनको पेट में जलन, कब्ज, उल्टी के साथ त्वचा पर लालिमा, खुजली आदि लक्षण महसूस हो सकते हैं।

पेट संबधी समस्याएं:- गिलोय के अधिक प्रयोग से कब्ज़, पेट में जलन जैसे लक्षण हो सकते हैं।

उलटी:- गिलोय का स्वाद कुछ लोगों के लिए उल्टी, मतली का कारण बन सकता है और साथ ही थकन और चक्कर आना जैसे लक्षण भी महसूस हो सकते हैं।

सावधनियां:-

– मधुमेह के मरीज जो इससे सम्बन्धित दवाइयों का सेवन करते हैं, उनको गिलोय के सेवन में सावधानी बरतनी चाहिए, क्योकि मधुमेह की दवाइयों के साथ इसके इस्तेमाल करने से ब्लड सुगर तेजी से गिर सकता है और हाइपोग्लाइसीमिया (निम्न रक्त शर्करा का स्तर) का कारण बन सकता है।

– अगर कोई रक्त पतला करने वाली दवाइयों का सेवन कर रहा है तो उसको गिलोय के उपयोग में बहुत अधिक सावधानी बरतनी चाहिए और डॉक्टर की परामर्श जरूर लेनी चाहिए।

– गर्भवती महिलाओं :-  गर्भवती महिलाओं को इसके इस्तेमाल करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए और इसके इस्तेमाल को लेकर अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लेना चाहिए।

निष्कर्ष

विभिन्न स्वस्थ लाभों को प्राप्त करने के लिए गिलोय का उपयोग सदियों से होता आया है। आयुर्वेद में गिलोय के फायदों के बारे में विस्तार पूर्वक व्याख्या मिलता है। गिलोय को कई नामों से जाना जाता है जैसे अमृता, गुडुची आदि। इसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया (Tinospora Cordifolia) है जो की मेनिस्पर्मेसी वनस्पति परिवार से सम्बन्धित है। यह एक प्रकार की बेल है जो पेड़ों, चट्टानों, दीवारों आदि का सहारा पाकर फैलती है। इसके पत्ते पान के पत्तों के समान प्रतीत होते हैं।

गिलोय के फायदे इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों और सूजन रोधी गुणों पर निर्भर करते हैं जिनकी एक विश्तृत श्रंखला है। गिलोय के लाभों में यह प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करता है,  त्वचा के लिए फायदेमंद है, पाचन बेहतर करता है, कैंसर जैसी गंभीर समस्याओं में लाभदायदक हो सकता है।

हालाँकि गिलोय के नुकसान की संभावनाएं भी हो सकती है जिसमें एलर्जी, पेट सम्बन्धी दिक्क्तें, उल्टी, मतली आदि शामिल है। इसके उपयोग को लेकर कुछ लोगों को सवधानी बरतनी चाहिए जैसे मधुमेह की दवाओं के सेवन करने के साथ इसका उपयोग नहीं करना चाहिए, गर्भवती महिलाओं को इसके उपयोग में सावधानी बरतनी चाहिए। गिलोय के इस्तेमाल के बाद किसी भी प्रकार की शारीरिक परेशानी महसूस होने पर इसके प्रयोग को तुरंत रोके और डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।

संदर्भ

  1. Pandey, Manisha, et al. “Evaluation of nutritional composition and antioxidant activity of herbal leaves.World J. Pharm. Pharm. Sci 5.8 (2016): 1396-1402. ↩︎
  2. Saha, Soham, and Shyamasree Ghosh. “Tinospora cordifolia: One plant, many roles.” Ancient science of life 31.4 (2012): 151. ↩︎
  3. Joladarashi, Darukeshwara, Nandini D. Chilkunda, and Paramahans Veerayya Salimath. “Glucose uptake-stimulatory activity of Tinospora cordifolia stem extracts in Ehrlich ascites tumor cell model system.Journal of food science and technology 51 (2014): 178-182. ↩︎
  4. Ahmad, Rumana, A. N. Srivastava, and Mohsin Ali Khan. “Evaluation of in vitro anticancer activity of stem of Tinospora cordifolia against human breast cancer and Vero cell lines.” J Med Plants Stud 3.4 (2015): 33-37. ↩︎
  5. Singh, Nisha, Sukh Mahendra Singh, and Pratima Shrivastava. “Effect of Tinospora cordifolia on the antitumor activity of tumor-associated macrophages–derived dendritic cells.” Immunopharmacology and immunotoxicology 27.1 (2005): 1-14. ↩︎
  6. Saha, Soham, and Shyamasree Ghosh. “Tinospora cordifolia: One plant, many roles.” Ancient science of life 31.4 (2012): 151. ↩︎
  7. Upadhyay, Avnish K., et al. “Tinospora cordifolia (Willd.) Hook. f. and Thoms.(Guduchi)–validation of the Ayurvedic pharmacology through experimental and clinical studies.” International journal of Ayurveda research 1.2 (2010): 112. ↩︎

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