शारीरिक दोष क्या है और कैसे संतुलित करें? – वात, पित्त, कफ

आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर का निर्माण पांच तत्वों से हुआ है और यह पांच तत्व शरीर में पाए जाने वाले त्रिदोषों (वात, पित्त,कफ) का प्रतिनिधित्व करते हैं।- चलिए इन त्रिदोषों के बारे में विस्तार पूर्वक समझते हैं।

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Brijesh Yadav

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आर्युवेद का संक्षिप्त विवरण

आयुर्वेद, प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है जो न केवल भारत बल्कि विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है।हालांकि इसके उत्पत्ति की ठीक समय-सीमा बता पाना थोड़ा मुस्किल है लेकिन आयुर्वेद का विकास लगभग पांच हजार साल पहले का माना जाता है, यानी मानव इतिहास के बराबर ही आयुर्वेद का इतिहास है।

आयुर्वेद का जनक भगवान धनवंतरी को माना जाता है, हालांकि आयुर्वेद के विकास में कई ऋषियों- मुनियों ने समय समय पर योगदान दिया है।

अगर हम आयुर्वेद शब्द को समझे तो इसको दो भागो में विभाजित किया जा सकता है आयुः + वेद, जिसका शाब्दिक अर्थ है: ‘आयु का वेद’ या ‘दीर्घायु का विज्ञान।

आयुर्वेद का सिद्धांत और चिकित्सा प्रणाली वात, पित्त, कफ के ही इर्द-गिर्द घूमती है, यानी आयुर्वेद के अनुसार शरीर में तीन प्रकार के दोष होते हैं वात, कफ और पित्त, जिनके असंतुलन हो जाने से समस्त शारीरिक परेशानियां उत्पन्न होती हैं यानी स्वस्थ शरीर के लिए इनका संतुलित होना बहुत जरूरी है, जिन्हें त्रिदोष भी कहा जाता है।

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आयुर्वेद के पांच तत्व और तीन दोष क्या हैं?

आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर का निर्माण पांच तत्वों से हुआ है।

  • पृथ्वी
  • वायु
  • जल
  • अग्नि
  • अंतरिक्ष (आकाश)

शरीर में मौजूद त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) का इन तत्वों के साथ गहरा संबंध होता है जैसे:

  • वात दोष का संबंध वायु और अंतरिक्ष से है।
  • पित्त दोष का संबंध अग्नि और जल से है।
  • कफ दोष का संबंध पृथ्वी और जल से है।

वात दोष क्या होता है?

Ayurveda Vata Dosha

वात का सब्दिक अर्थ वायु होता है। वात दोष वायु और आकाश तत्व से मिलकर बना है। जो शरीर में गति या उत्साह उत्पन्न करता है। वात की प्रकृति हल्की, लघु, ठंडी और शुष्क होती है। यह आमतौर पर नाभि के निचले उदर क्षेत्र में मौजूद होता है।

शरीर में होने वाली सभी प्रकार की गतियाँ इसी वात के कारण होती हैं। जैसे कि हमारे शरीर में होने वाला रक्त संचार, श्वास, कचरे के उन्मूलन, आदि।

वात के अंसुलित हो जाने पर शरीर में कई परेशानियां उत्पन होने लगती हैं, जैसे घुटनों में दर्द, हड्डियों और शरीर में तेज दर्द और शारीरिक कमजोरी आदि जैसी समस्याएं।

पित्त दोष क्या होता है?

Ayurveda Pitta Dosha

पित्त दोष अग्नि और जल तत्वों से मिलाकर बनाता है, जिसका संबंध शारीरिक ऊष्मा या गर्मी से होता है। ऐसा माना जाता है कि यह नाभि के ऊपरी उदर क्षेत्र के ऊपर स्थित है।

पित्त पांच प्रकार का होता है, जो इसके कार्य और शरीर के अलग-अलग स्थानों में रहने के आधार पर विधाजित किए जाते हैं।

ये पांच प्रकार हैं- पाचक, रंजक, साधक, आलोचक और भ्राजक।

(यह अग्नाशय, यकृत, प्लीहा, हृदय, दोनों नेत्र, संपूर्ण देह तथा त्वचा में रहता है। आमाशय में पाचक, यकृत और तिल्ली में रंजक, हृदय में साधक, दोनों नेत्रों में आलोचक तथा सारे शरीर में भ्राजक रहता है।)

पित्त दोष होने के कई कारण हो सकते है, लेकिन आमतौर पर भय, शोक, क्रोध, अधिक परिश्रम, जले पदार्थों का सेवन, अधिक मैथुन, नमकीन, तिल, तेल, मूली, सरसों, हरी सब्जियां, मछली, शराब आदि से पित्त दोष अधिक होने की संभावना होती है।

जब शरीर में पित्त की कमी होता है तो शरीर की गर्मी कम तथा रौनक घट जाती है। जब पित्त शरीर में बढ़ जाता है तो ठंडी चीजों की इच्छा होती है, शरीर पीला हो जाता है, नींद कम आती है, बल की हानि होती है।

कफ दोष क्या होता है?

Ayurveda Kapha Dosha

कफ दोष पृथ्वी और पानी तत्वों से मिलकर बना है। जिसकी प्रकृति तैलीय, ठंडा, भारी, धीमा, नरम, पतला और स्थिर होता है। कफ दोष की उपस्थिति पेट के ऊपरी हिस्से या छाती क्षेत्र में माना जाता है।

कफ से ही शारीरिक और मानसिक संतुलन एवं मजबूती मिलती है। शरीर की संरचना, बीमारियों के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता, शरीर में तरल पदार्थों के स्‍तर को बनाए रखना, प्रेम, क्षमा, धैर्य और ईमानदारी जैसी भावनाएं कफ के कारण ही होती हैं।

कफ दोष के शरीर में असंतुलित हो जाने पर कई प्रकार के रोग जैसे वजन बढ़ना, जीभ पर सफेद परत जमना, साइनस में कफ जमना, पाचन खराब होना, कमजोरी, प्री-डायबिटीज, खांसी-जुकाम की समस्या, नाक बहना, हाई फीवर, ठंडा पसीना आना, बार-बार पेशाब आना, कान में अधिक मैल जमना, त्‍वचा और बालों का तैलीय होना और सूंघने की क्षमता में कमी आना आदि उत्पन्न होते हैं।

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तीनों दोषों का शरीर में क्या कार्य होता है?

शरीर में पाए जाने वाले त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) का शरीर में विशिष्ट कार्य होता है, जिसका निर्धारण उनके तत्त्वों पर आधारित होता है जिनसे वे बने होते हैं। जैसे वात गति को नियंत्रित करता है, पित्त पाचन को नियंत्रित करता है, और कफ सम्पूर्ण शारीरिक संरचना को नियंत्रित करता है।

इसलिए प्रत्येक दोष का शरीर से संबंधित विशिष्ट कार्य होते हैं। चलिए विस्तार से समझते हैं:-

वात दोष के कार्य

वात दोष शरीर के भीतर सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है। वात श्वसन जैसी प्रक्रियाओं के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने में मदद करता है और धातुओं या ऊतकों के स्वास्थ्य को बनाए रखता है, साथ ही भूख, प्यास, पेशाब, मलत्याग, नींद आदि जैसी सभी प्राकृतिक जरूरतों का प्रबंधन भी करता है।

वात हृदय की सुचारू कार्यप्रणाली, मांसपेशियों के संकुचन, रक्त के प्रवाह और मस्तिष्क से नसों के माध्यम से पूरे शरीर में संचार सुनिश्चित करता है।

पित्त दोष के कार्य

पित्त दोष शरीर के चयापचय और पाचन तंत्र के सुचारू रूप से चलने और नियंत्रित करने में मदत करता है।

पित्त अग्नि से जुड़ा है, जो शरीर के सामान्य तापमान को सुनिश्चित करता है। यह बुद्धि और शारीरिक चमक पैदा करता है। यह परिवर्तन से जुड़ा है और इस प्रकार भावनाओं और अनुभवों को नियंत्रित करता है।

कफ दोष के कार्य

कफ शरीर को स्फूर्ति, मजबूती और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। इसके अतरिक्त यह शारीरिक संरचना की स्थिरता और ताकत भी सुनिश्चित करता है।

क्योंकि इसमें जल तत्व होता है, यह ऊतकों और कोशिकाओं को हाइड्रेट रखता है। यह त्वचा की नमी को भी बनाए रखता है। यह जोड़ों को चिकनाई प्रदान करता है, जिससे वे अच्छी तरह से काम कर पाते हैं।

दोषों का असंतुलन या खराब होने से क्या प्रभाव होता है?

जब दोष अच्छी तरह से संतुलित होते हैं, तो यह अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करते हैं। हालांकि, यह संभव है कि किसी कारण से इन दोषों में असंतुलन आ जाए। दोष असंतुलन होने के कई कारण हो सकते हैं, उदाहरण के लिए: खराब आहार, खराब रहन- सहन, तनाव, चिंता या किसी प्रकार का आघात भी दोषों के असंतुलित होने का कारण बनता है।

कारण जो भी हो, जब कोई दोष खराब हो जाता है, तो इसका सीधा असर सेहत पर पड़ सकता है। किसी भी दोष के खराब होने से दूसरे कई दोष भी उत्पन्न होते हैं जो शारीरिक परेशानियां, रोग आदि का कारण बनते हैं। आइए देखें कि किसी भी दोष के खराब होने से क्या होता है।

खराब वात का शरीर पर प्रभाव

शरीर में वात दोष का असंतुलन हो जाना यानी शरीर में वायु की मात्रा का बढ़ जाना है जो विभिन्न परेशानियों का कारण बनता है जैसे शरीर में रूखापन का बढ़ना, नींद में कमी आना, धीमी और भारी आवाज होना, बेचैनी रहना, पेट फूलना, अधिक गैस बनना, नींद ना आना, बेचैनी रहना, दुबलापन यदि।

खराब पित्त का शरीर पर प्रभाव

पित्त दोष के खराब होने से शरीर के भीतर कई प्रकार के नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होते हैं जिससे पूरे शरीर के अंग प्रभावित होते हैं।

पित्त असंतुलित हो जाने से मन में नकारात्मक स्थिति पैदा हो सकती है, और ईर्ष्या, हताशा, क्रोध जैसी प्रतिक्रिया पैदा हो सकती है।

पित्त खराब होने से पाचन प्रभावित होती है, और अधिक या कम भूख और प्यास लग सकती है। पित्त दोष हमारी नीद को प्रभावित करता है, और नींद न आने का कारण भी बन सकता है।

खराब कफ का शरीर पर प्रभाव

कफ दोष के खराब होने से शरीर के ऊतकों और अंगों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे सीने में जकड़न, सिर में दर्द और चेहरे पर सूजन जैसे समस्याएं होती हैं। शरीर में ढीलापन और त्वचा का सफेद होना जैसी परेशानियां भी होने लगती हैं।

इस दोष के असंतुलित होने से आमतौर पर श्वास संबंधी समस्याएं होती हैं जिसमे अधिक बलगम आना बार बार खांसी आना प्रमुख है।

कफ खराब होने पर सुस्ती और अधिक नींद आती है। यह मानसिक स्वस्थ पर भी प्रभाव डालता है।

वात, पित्त, कफ को कैसे संतुलित करें?

शारीरिक दोषों में असंतुलन को ठीक किया जाना बहुत जरूरी होता है, ताकि हम पूरी तरह से स्वस्थ जीवन जी सकें। इन दोषों को संतुलित करने के कई तरीके हो सकते हैं जैसे हर्बल आयुर्वेदिक उपचार, जीवन शैली में परिवर्तन, आहार परिवर्तन, व्यायाम, योग और प्राणायाम का अभ्यास, और असंतुलित दोष की प्रकृति के विपरित के कार्य करना।

प्रकृति के विपरित की प्रकृति से दोषों को संतुलित करना।

किसी भी दोष के अतुलित होने पर, उसको संतुलित करने के लिए उसके प्रकृति के विपरित कार्य करने की सलाह भी दिया जाता है जैसे:-

वात दोष को संतुलित करने के लिए कार्य

वात दोष की प्रकृति हल्की, लघु, ठंडी और शुष्क मानी जाती है और इसके विपरित की प्रकृति नम, गर्म, तैलीय और चिकने होती है। इसलिए वात को नियंत्रित करने के लिए गर्म और नम वातावरण में रहने और गर्म कपड़े आदि पहनने की सलाह दी जाती है।

इसके अलावा गर्म और पौष्टिक खाना खाने की सलाह दी जाती है जैसे गर्म सूप, घी, नारियल,जामुन, और डेयरी उत्पाद, गर्म मसाले जिसमे अदरक, हल्दी, दालचीनी, अलसी आदि का सेवन करने की सलाह दी जाती है।

पित्त दोष को संतुलित करने के लिए कार्य

पित्त दोष की प्रकृति गर्म होती है, इसलिए इसको संतुलित करने के लिए इसके विपरीत की प्रकृति शुष्क, मुलायम और ठंडे, चीजों का उपयोग किया जाता है। जैसे किसी ठंडी जगह पर जाने या रहने को कहा जाता है, शांत वातावरण में मुलायम बिस्तर पर आराम करने को कहा जाता हैं।

भोजन में हल्का, मीठा और ठंडा भोजन करने को कहा जाता है। इस स्थिति में गर्म तासीर के भोजन का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए और प्रोसेस्ड और रिफाइंड खाद्य पदार्थों के सेवन करने से भी बचना चाहिए।

कफ दोष को संतुलित करने के लिए कार्य

क्योंकि कफ दोष को प्रकृति तैलीय, ठंडा, भारी, धीमा, नरम, पतला और स्थिर होती है। इसलिए इसको संतुलित करने के लिए कफ के विपरीत की प्रकृति गर्म, शुष्क, हल्का और सक्रिय का इस्तेमाल किया जाता है।

इसको संतुलन लाने के लिए, गर्म और शुष्क वातावरण में रहने की सलाह दी जाती है। शारीरिक रूप से सक्रिय रहने को कहा जाता है जिसमे व्यायाम और शारीरिक गतिविधि।

कफ दोष संतुलित करने के लिए, भोजन में तीखे, कसैले या कड़वे स्वाद वाले, मसालेदार और अम्लीय खाद्य पदार्थ खाद्य पदार्थ शामिल करने की सलाह दी जाती है जैसे साबुत अनाज, अंडे, कम वसा वाले पनीर, मसाले आदि।

व्यायाम से दोष को संतुलित करना

आर्युवेद के अनुसार प्रत्येक मनुष्य की शारीरिक प्रकृति अलग अलग होती है जो त्रिदोषों और उसके तत्वों पर निर्भर करती है। इसीलिए शारीरिक प्राकृति के आधार पर व्यायाम भी अलग अलग निर्धारित किया गया है जिसको करना बहुत फायदेमंद होता है, और ऐसा करने से त्रिदोषों को संतुलित करने में भी मदत मिलती है।

वात शरीर के प्रकार के लिए व्यायाम

जिन व्यक्तियों में वात दोष की प्रधानता होती है उनको शारीरिक रूप से सक्रिय रहने की आवश्कता होती है

क्योंकि इस दोष की एक प्रमुख विशेषता गति होती है। इसलिए, साइकिल चलाना, जॉगिंग, दौड़ना, टहलना, तैरना, चलने-फिरने वाले योगासन, नृत्य, खेल आदि शामिल होने चाहिए।

पित्त बॉडी टाइप के लिए व्यायाम

पित्त दोष की प्रकृति गर्म होती है इसलिए यह शरीर में गर्मी पैदा करने वाला दोष है, और इसके असंतुलित हो जाने पर, शरीर में कम तापमान बनाए रखने की आवश्यकता होती है। इसलिए पित्त टाइप के लोगों को अधिक व्यायाम और शरीर में गर्मी पैदा करने वाले कार्यों को करने से बचना चाहिए, जैसे जोरदार व्यायाम और अधिक मेहनत वाले कार्य आदि।

जिस समय मौसम ठंडा रहता है जैसे की सुबह या देर शाम के समय ही व्यायाम आदि कार्य करना चाहिए।

कफ बॉडी टाइप के लिए व्यायाम

वह लोग जिनमे कफ दोष की प्रधानता होती है, वह शरीरक रूप से मजबूत और शक्तिशाली कद-काठी के होते हैं। इसलिए कफ प्रधानता में कठिन व्यायाम, योग और परिश्रम करने पर रोक नही लगाया जाता है। बल्कि उनको ऐसा करने की सलाह दी जाती है।

स्वास्थ्य में सुधार के लिए अधिक कार्डियो व्यायाम का अभ्यास करना फायदेमंद होता है। इसमें कठिन योग शरीर के लिए अच्छा होता है।

औषधि और आहार से दोषों को संतुलित करना

त्रिदोषों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। जिसके साथ खान पान पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।

जिस प्रकार शरीर की प्रकृति भिन्न भिन्न होती है उसी प्रकार औषधियों और फल साग सब्जी की प्रकृति भी भिन्न होती है। और किसी एक प्रकार के दोष की अधिक प्रधानता होने पर उसको ठीक करने के लिए उसके विपरित की प्रकृति वाले औषधियों और भोजन का इस्तेमाल किया जाता है। ताकि उस दोष को बैलेंस किया जा सके।

वात दोष को संतुलित करने के लिए औषधि और आहार

वात को संतुलित करने के लिए औषधि जैसे – अश्वगंधा, ब्रह्मी, जटामांसी, अर्जुन चूर्ण आदि वात शमक औषधियां उपयोगी हो सकती हैं।

और आहार में तिल, गुड़, द्राक्षा, दूध, घी, मसूर की दाल, गर्म द्रव्य और मधुर व तीक्ष्ण भोजन वात प्रकृति के लिए लाभदायक होते हैं।

पित्त दोष को संतुलित करने के लिए औषधि और आहार

पित्त दोष को संतुलित करने के लिए औषधि जैसे – अमलकी, नींबू, गुड़ूची, गिलोय, शतावरी, सारिवा, पित्त शमक औषधियां उपयोगी हो सकती हैं।

वात दोष में आहार जैसे सफेद चावल, तरबूज, खीरा, नारियल पानी, शहद, मेथी, ब्रॉकोली, आदि का इस्तेमाल करना बहुत लाभदायक होता है।

कफ दोष को संतुलित करने के लिए औषधि और आहार

कफ दोष को संतुलित करने के लिए औषधि: त्रिफला, तुलसी, शुंगी, दलचीनी, गुग्गुल, कपूर आदि कफ शमक औषधियां उपयोगी हो सकती हैं।

कफ दोष के लिए आहार जैसे दालचीनी, मुंग दाल, तुलसी पत्ती, हल्दी, अदरक, लहसुन, गर्म द्रव्य और तीखे, आदि कफ प्रकृति के लिए लाभदायक होता है।

निष्कर्ष

आयुर्वेद के अनुसार शरीर पांच प्रकार के तत्वों से मिलकर बना है, और यही तत्व शरीर के तीन दोषों का प्रतिनिधित्व करते है (वात, कफ, पित्त), जो हमेशा से शरीर में मौजूद होते हैं।

किसी भी एक दोष में असंतुलन हो जाने पर यानी शरीर में किसी भी दोष के बढ़ जाने या घट जाने पर, उससे जुड़ी विभिन्न प्रकार की शारीरिक परेशानियां देखने को मिलती है और अक्सर व्यक्ति रोग ग्रस्त रहता है।

दोषों के असंतुलन होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे खराब रहन सहन, खराब खान पान, आदि।

अपने आपको रोगों से बचाने के लिए, इस दोषों को संतुलित करना बहुत जरूरी हो जाता है। इसके लिए अपने असंतुलित दोष को पहचान करके, उसके अनुसार अपने रहन-सहन, खान-पान में बदलाव लाना चाहिए। और आयुर्वेदिक एक्सपर्ट से सलाह लेकर कुछ औषधियों और व्यायाम आदि से भी दोष को संतुलित किया जाना चाहिए।

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