इओसिनोफिलिया: कारण, लक्षण और उपचार माध्यम

कई प्रकार की शरीरिक दिक्क्तें होने पर जब हम ब्लड टेस्ट करते हैं तो कुछ मामलों में बीमारी के पीछे का कारण इओसिनोफिलिया को बताया जाता है। इओसिनोफिलिया जैसी चिकित्सीय स्थिति से लोग अक्सर लोग अनजान होते हैं, लेकिन इसका हमारे स्वास्थ पर बहुत गहरा प्रभाव होता है। तो चलिए ...

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Anshika Sharma

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कई प्रकार की शरीरिक दिक्क्तें होने पर जब हम ब्लड टेस्ट करते हैं तो कुछ मामलों में बीमारी के पीछे का कारण इओसिनोफिलिया को बताया जाता है। इओसिनोफिलिया जैसी चिकित्सीय स्थिति से लोग अक्सर लोग अनजान होते हैं, लेकिन इसका हमारे स्वास्थ पर बहुत गहरा प्रभाव होता है।

तो चलिए इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से इओसिनोफिलिया के बारे में विस्तार से समझते हैं जिसमें इसके कारण, लक्षण, उपचार और बचाव के साथ डॉक्टर से इस मामले में कब परामर्श लेना चाहिए के बारे में जानेंगे। ताकि इओसिनोफिलिया से जुड़ी संभावित जटिलताओं को पहचान कर अपने समग्र स्वास्थ का विकास किया जा सके।

इओसिनोफिलिया क्या होता है?

इओसिनोफिलिया (Eosinophilia) एक रक्त सम्बन्धी विकार है जिसमें इओसिनोफिल्स कोशिकाओं की मात्रा समान्य से अधिक होने लग जाती है। इओसिनोफिल्स एक प्रकार के स्वेत रक्त कण होते हैं जो शरीर के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं और हमें विभिन्न प्रकार के संक्रमण और कुछ बीमारियों से बचाने का कार्य करते हैं।1

श्वेत रक्त कण क्या होता है?

हमरा खून विभिन्न प्रकार के अवयवों से मिलकर बनता है जैसे:-

  1. प्लाज्मा
  2. श्वेत रक्त कण
  3. लाल रक्त कण
  4. प्लेटलेट्स

खून में पाए जाने वाले इन अवयवों का शरीर में अलग-अलग काम होता है। उन्ही में से श्वेत रक्त कण का मुख्य कार्य हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को बढ़ाना और रोगाणुओं से रक्षा करना होता है।

इओसिनोफिलिया Hermedy

रक्त में 5 प्रकार के श्वेत रक्त कण पाए जाते हैं जैसे:-

  • न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils)
  • ल्य्म्फोसिट्स (Lymphocytes)
  • मोनॉइट्स (Monocytes)
  • इओसिनोफिल्स (Eosinophils)
  • बासोफिल्स (Basophils)

इओसिनोफिल्स न्यूट्रोफिल या लिम्फोसाइट्स जैसी अन्य श्वेत रक्त कोशिकाओं के समान प्रसिद्ध नहीं हैं, लेकिन शरीर में उनके महत्वपूर्ण कार्य हैं। इओसिनोफिल्स मुख्य रूप से एलर्जी प्रतिक्रियाओं और परजीवी संक्रमणों के प्रति शरीर की सुरक्षा करतें हैं।

इओसिनोफिल्स की संख्या कितना होना चाहिए?

एक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में आमतौर पर कम संख्या में इओसिनोफिल्स पाए जाते हैं। वयस्कों में इओसिनोफिल्स की संख्या प्रति माइक्रोलीटर रक्त में 0 और 500 के बीच होती है। और जब यह संख्या 500 से अधिक होने लग जाती है तो इस स्थिति को इओसिनोफिलिया कहा जाता है।

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इओसिनोफिलिया के कारण

इओसिनोफिलिया होने के पिन पॉइंट कारण बता पाना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन कुछ कारक हो सकते हैं जो इओसिनोफिलिया होने की संभावनाओं को बढ़ा सकते हैं। 

इओसिनोफिलिया होने के सामान्य कारण –

1. एलर्जी:- इओसिनोफिलिया होने के पीछे एलर्जी एक प्रचलित और समान्य करक हो सकता है। प्रतिरक्षा प्रणाली का पराग, धूल के कण, या कुछ खाद्य पदार्थों से होने वाली एलर्जी के प्रति अधिक सक्रिय हो जाने के कारण इओसिनोफिल्स में तेजी से वृद्धि हो सकती है। एलर्जी संबंधी प्रतिक्रियाएँ जैसे एलर्जिक राइनाइटिस, अस्थमा, या एटोपिक डर्मेटाइटिस जैसी स्थितियां इओसिनोफिलिया को उजागर कर सकतें हैं।

2. परजीवी संक्रमण:- इओसिनोफिल्स परजीवी संक्रमण के खिलाफ शरीर की रक्षा का एक महत्वपूर्ण घटक हैं। लेकिन परजीवी संक्रमणों जैसे कि फ्लारिया, राउंडवॉर्म, टेपवर्म या प्रोटोजोआ के कारण होने वाले संक्रमण के खिलाफ लड़ने में प्रतिरक्षा प्रणाली अधिक इओसिनोफिल्स का उत्त्पादन कर सकती है।

3. ऑटोइम्यून रोग:- कुछ ऑटोइम्यून बीमारियाँ जैसे वास्कुलिटिस, पॉलीएंगाइटिस के साथ इओसिनोफिलिक ग्रैनुलोमैटोसिस इओसिनोफिलिया का कारण बन सकती हैं। इन स्थितियों में प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से स्वस्थ ऊतकों पर हमला करने लग जाती है, जिससे  इओसिनोफिल्स में वृद्धि हो सकती है।

4. दवाएं:- कुछ दवाएं विशेष रूप से कुछ एंटीबायोटिक्स, गैर-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं (एनएसएआईडी), और एंटीसाइकोटिक दवाएं भी इओसिनोफिलिया उजागर कर सकती हैं।

इओसिनोफिलिया होने के कम सामान्य कारण –

5. कैंसर:- कुछ कैंसर जैसे हॉजकिन का लिंफोमा और कुछ प्रकार के ठोस ट्यूमर, इओसिनोफिल्स के उत्त्पादन में वृद्धि कर सकते हैं और इओसिनोफिलिया का कारक बन सकती हैं ।

6. संयोजी ऊतक रोग:- सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एसएलई) और रुमेटीइड गठिया जैसी स्थितियां, जो ऑटोइम्यून विकार हैं कभी कभी इओसिनोफिलिया के पीछे जिम्मेदार हो सकती हैं।

7. हाइपेरेओसिनोफिलिक सिंड्रोम (Hypereosinophilic syndrome):- यह विकारों का एक दुर्लभ समूह है जो बिना किसी स्पष्ट कारण के लगातार बढ़े हुए इओसिनोफिल काउंट की विशेषता है। एचईएस से कई अंगों को नुकसान हो सकता है और इसके लिए विशेष चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है।

8. इडियोपैथिक इओसिनोफिलिया (Idiopathic Eosinophilia):- अगर रक्त में इओसिनोफिल्स के वृद्धि के पीछे के कारण अस्पष्ट या अज्ञात होता है तो इस स्थिति को इडियोपैथिक इओसिनोफिलिया के रूप से संदर्भित किया जाता है।

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इओसिनोफिलिया के लक्षण

इओसिनोफिलिया के लक्षण प्र्त्येक व्यक्तियों में भिन्न हो सकते हैं यह इसके प्रकारों और कारणों पर निर्भर करता है। हालाँकि इसके लक्षण बहुत मामूली हो सकते हैं और लक्षणों को देखर इसका अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल भी हो जाता है इसलिए अधिकतर मामलों में इसके लक्षणों के बावजूद  इओसिनोफिलिया का पता डॉक्टर के द्वारा किये टेस्ट में माध्यम से पता चलता है। 

इओसिनोफिलिया के कुछ समान्य और मुख्य लक्षण:-

  • थकान और कमजोरी
  • बुखार
  • खाँसना
  • सांस की तकलीफ या घरघराहट
  • त्वचा पर दाने या खुजली होना
  • पेट में दर्द या बेचैनी
  • दस्त या अन्य पेट सम्बन्धी दिक्क्तें
  • बढ़े हुए लिम्फ नोड्स
  • जोड़ों का दर्द या सूजन
  • उन्नत यकृत एंजाइम

यहाँ केवल कुछ समान्य और अधिकतर मामलों में देखे जाते वाले लक्षणों का ही जिक्र किया गया है। इसके अतिरिक्त भी कई प्रकार के लक्षण महसूस हो सकते हैं और कुछ मामलों में इओसिनोफिलिया के लक्षण बहुत गंभीर भी हो सकते है जैसे दौरे या स्ट्रोक पड़ना, किसी अंग की विफलता, आदि। इसलिए उपर्युक्त बताये लक्षण बेशक मामूली लगे इसके बावजूद डॉक्टर से तुरंत सम्पर्क करना चाहिए।

इओसिनोफिलिया का इलाज कैसे किया जाता है?

इओसिनोफिलिया के इलाज के लिए सबसे पहले उसे उजागर करने वाले कारकों की पहचान करना बहुत मत्वपूर्ण होता है इसलिए डॉक्टर के द्वारा कई प्रकार के परीक्षण किये जा सकतें हैं। यहाँ कुछ प्रमुख परीक्षण प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है जो डॉक्टर इओसिनोफिलिया के उपचार के लिए अपनाते हैं।2

इओसिनोफिलिया के उपचार प्रकिरिया में निम्नलिखित चरण शामिल हो सकते हैं:-

1. चिकित्सा इतिहास और लक्षण मूल्यांकन:- इओसिनोफिलिया के इलाज के लिए पहला कदम रोगी के चिकित्सीय इतिहास के बारे में जानकारी हासिल करना और उनके लक्षणों के बारे में जानना शामिल है, जिसमें एलर्जी, हाल फ़िलहाल व कोई पुराने रोग, और दवाओं का उपयोग, आदि के बारे में जानकारी हासिल करना प्रमुख है, साथ में परिवार और माता पिता के चिकित्सा इतिहास के बारे में भी पूछ-ताछ किया जा सकता है।

2. शारीरिक परीक्षण:- दूसरी प्रक्रिया में रोगी की शारीरिक परीक्षण किया जा सकता है जिसमे  किसी एलर्जी रिएक्शन जैसे त्वचा पर चकत्ते, श्वसन समस्या जैसे अस्थमा, या बढ़े हुए लिम्फ नोड्स आदि का परीक्षण किया जा सकता है।

3. रक्त परीक्षण:- रक्त की जाँच इओसिनोफिलिया के उपचार प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण है जिसमे खून में स्वेत रक्त कोशिकाओं की वृद्धि का मूल्यांकन किया जा सकता है। क्योकि रक्त जाँच के माध्यम से सटीक जानकारी हासिल किया जा सकता है।

4. अतिरिक्त परीक्षण:- रोगी के चिकित्सा इतिहास और रक्त परीक्षण से मिले परिणामों के आधार पर डॉक्टर के द्वारा कई अतिरिक्त परीक्षण किये जा सकते हैं ताकि इओसिनोफिलिया के अंतर्निहित कारण का पता किया जा सकता। अतिरिक्त परीक्षण में  निम्नलिखित परीक्षण शामिल हो सकते हैं:-

  • एलर्जी परीक्षण:- एलर्जी की पहचान करने के लिए त्वचा या रक्त परीक्षण।
  • मल परीक्षण:- परजीवी संक्रमण की जांच के लिए।
  • इमेजिंग अध्ययन:- एक्स-रे, सीटी स्कैन या एमआरआई का उपयोग आंतरिक अंगों की स्थिति की जाँच करने के लिए ।
  • बायोप्सी (Biopsy):- ऊतक का नमूना लेकर जांच किया जा सकता है, खासकर ऐसे मामलों में जहां ऑटोइम्यून बीमारियों या घातक बीमारियों का संदेह हो।
  • अस्थि मज्जा बायोप्सी (Bone marrow biopsy):- कई मामलों में जब इओसिनोफिलिया के कारण का पता लगाना मुश्किल हो जाता है तो अंतर्निहित अस्थि मज्जा विकारों का पता लगाने के लिए अस्थि मज्जा बायोप्सी आवश्यक हो सकती है।

यह ध्यान देना मत्वपूर्ण है की किसी भी प्रकार की इओसिनोफिलिया सम्बन्धी जाँच व्यक्ति  की स्थिति पर निर्भर करती है इसलिए जाँच प्रक्रिया प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न हो सकती है।

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इओसिनोफिलिया उपचार विकल्प

इओसिनोफिलिया का इलाज या उपचार इसे उजागर करने वाले कारणों और इसकी गंभीरता पर निर्भर करता है। इसलिए इओसिनोफिलिया के करणों का पता लगाने के बाद डॉक्टर दवाओं, जीवनशैली में बदलाव आदि तरीकों से इसके मूल कारण का समाधान करने की कोशिश करता है।3 चलिए विस्तार से समझते हैं:-

दवाएं

इओसिनोफिलिया और इससे जुड़े लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए अक्सर दवाओं का उपयोग किया जाता है। दवा का चुनाव इओसिनोफिलिया के कारण और गंभीरता पर निर्भर करता है, इसलिए किसी भी प्रकार की दवा का उपयोग करने से पहले विस्तृत जांच और आंकलन की जरूरत होती है। हमारी सलाह है की गंभीर परिणाम से बचने के लिए किसी भी मेडिसिन का स्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से अवश्य परामर्श करें।

  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स:- यह सूजनरोधी दवाएं अक्सर इओसिनोफिल्स के स्तर को कम करने और लक्षणों को कम करने के लिए दिया जाता है। अधिकतर मामलों में एलर्जी, अस्थमा और ऑटोइम्यून स्थितियों से जुड़े इओसिनोफिलिया के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • एंटीपैरासिटिक दवाएं:- परजीवी संक्रमण के कारण होने वाले इओसिनोफिलिया के इलाज के लिए और परजीवियों को खत्म करने के लिए एंटीपैरासिटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है।
  • इम्यूनोसप्रेसेन्ट्स:- ये दवाएं ऑटोइम्यून बीमारियों से जुड़े गंभीर इओसिनोफिलिया के इलाज के लिए डॉक्टर के द्वार दी जा सकती हैं।

डॉक्टर के द्वारा अन्य कई प्रकार की दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसका निर्धारण इओसिनोफिलिया के कारणों पर निर्भर करता है। एक बार फिर हम आपका ध्यान इस और खींचना चाहते हैं की किसी भी प्रकार के दवाओं का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से जरूर परामर्श करें क्योकि यैसा नहीं करने पर स्वास्थ और अधिक खराब हो सकता है।

जीवनशैली में बदलाव

गलत जीवनशैली में सुधार करने से इओसिनोफिलिया के उपचार में सहायता मिल सकती है इसलिए डॉक्टर के द्वारा जीवनशैली में उचित बदलाव करने को कहा जा सकता है जैसे व्यायाम, खान-पान में बदलाव आदि। चलिए विस्तार पूर्वक समझते हैं:-

  • एलर्जी से बचाव:- अगर आपको किसी चीज से एलर्जी है या एलर्जी होने की संभावना है तो उससे बचने को कहा जा सकता है, जिसमे खाद्य एलर्जी, पराग, धुल के कण आदि प्रमुख हैं।  कुछ एलर्जी जो मौसमी होती है उनमें अपने शरीर का विशेष ध्यान देने को कहा जा सकता है।
  • आहार परिवर्तन:- ऐसे खाद्य पदार्थ जो अक्सर सेहत पर बुरा प्रभाव डालते हैं जैसे तली हुई चीजे, अधिक मीठी, कोल्ड्रिंग आदि के उपयोग पर प्रतिबंधित लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त वह खाद्य पदार्थ जो एलर्जी होने के जोखिम को बढ़ाते हैं उनके उपयोग पर भी प्रतिबंध किया जा सकता है।
  • तनाव प्रबंधन:- तनाव इओसिनोफिलिया के स्थिति को और भी अधिक ख़राब कर सकता है इसलिए इसे कम करने को कहा जा सकता है जिसमें ध्यान, योग आदि करने का सुझाव भी शामिल हैं।
  • व्यायाम:- नियमित व्यायाम करने से इओसिनोफिलिया के जोखिम को कम किया जा सकता है इसलिए नियमित व्यायाम करने का सुझाव भी इसमें प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • दवाओं पर रोक:- अगर किसी अन्य समस्या के लिए किस दवा के प्रयोग से इओसिनोफिलिया उजागर हो रहा है ऐसा पाने पर डॉक्टर उस दवा के उपयोग पर तुरंत रोक लगाने को कह सकता है।

हालाँकि डॉक्टर इओसिनोफिलिया के इलाज करने के अन्य कई माध्यमों का उपयोग कर सकता है, जिसका निर्धारण व्यक्ति की शारीरिक स्थिति पर निर्भर करता है और इओसिनोफिलिया के कारण पर निर्भर करता है।  यहाँ केवल प्रमुख इलाज के माध्यमों का ही जिक्र किया गया है।

इओसिनोफिलिया से बचाव

हालाँकि किसी दवाई का इस्तेमाल आप स्वयं नहीं कर सकते हैं, डॉक्टर की सलाह की जरूरत होती है। लेकिन कुछ चीजे जो आप इओसिनोफिलिया से बचाव के लिए स्वयं कर सकते हैं जिनका जिक्र निम्नलिखित किया गया है:- 

1. शारीरिक स्वास्थ को बनाये रखें:- आपको यह बताने की जरूरत नहीं है की शारीरिक स्वास्थ न केवल आपको इओसिनोफिलिया में बल्कि अन्य बिमारियों के क्या अहम योगदान देता है। इसलिए अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए स्वस्थ दिनचर्या, नियमित योग, व्यायाम, पर्याप्त नींद और हेल्थी भोजन करें। स्मोकिंग, अल्कोहल, जंक भोजन, ताली हुई और अधिक मीठी चीजों को खाने से बचें ।

2. कम पके मांस का सेवन ना करें:- उन मांस जिको अच्छे से पकाया नहीं गया हो उनमें कई प्रकार की हानिकारक बैक्टीरिया हो सकते हैं जो इओसिनोफिल का स्तर बढ़ा सकते हैं जो इओसिनोफिलिया का कारण बनते हैं।

3. परजीवियों से बचें:- परजीवियों से बचने के लिए हाथ अच्छे से धोएं, फल सब्जियों को अच्छे से साफ करके खाएं, और अच्छे से पका कर खाएं, साफ पानी पियें, मच्छर के काटने से बचें जो फाइलेरिया परजीवी को फैला सकता है, ज़ूनोटिक परजीवियों के खतरे को कम करने के लिए पालतू जानवरों और जानवरों से सावधान रहें।

4. दवाओं के इस्तमाल में सावधानी बरतें:- जिन दवाओं को खाने से आपको एलेर्जी होती है उन दवाओं को खाने से बचें, कई बार दवाओं की एलेर्जी इतनी मामूली होती है की हम उसपर गौर नहीं करते हैं, इसलिए डॉक्टर की निगरानी में ही दवाओं का सेवन करें।

5. प्रदूषण से बचें:- हालाँकि हम सभी जानते हैं की आज कल के वातावरण में प्रदूषण से बच पाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन इओसिनोफिलिया के लक्षण को कण्ट्रोल करना है तो आपको प्रदूषण से अपने आपको बचाना पड़ेगा।

6. तनाव को कम करें:- तनाव कई प्रकार की बिमारिओं की जड़ हो सकता है इसलिए इओसिनोफिलिया के खतरे को कम करने के लिए तनाव प्रबंधन बहुत जरूरी है।

निष्कर्ष

इओसिनोफिलिया एक रक्त सम्बन्धी विकार है जिसमे रोगों से रक्षा करने वाले श्वेत रक्त कणों में इओसिनोफिल्स नामक श्वेत रक्त कण की संख्या में वृद्धि होने लगती है। इओसिनोफिल्स में वृद्धि के पीछे कई कारक हो सकते हैं जो इओसिनोफिलिया के जोखिम को बढ़ता हैं जैसे एलर्जी, परजीवी संक्रमण, ऑटोइम्यून रोग, और दवाएं। जिससे कई प्रकार के लक्षण उजागर होते हैं जैसे थकान और कमजोरी, बुखार, खाँसना, सांस की तकलीफ या घरघराहट और त्वचा पर दाने या खुजली होना आदि।

इओसिनोफिलिया का इलाज करने के लिए इसे उजागर करने वाले कारकों को पहचाना बेहद जरूरी है इसलिए डॉक्टर के द्वारा रोगी के चिकित्सा इतिहास और लक्षण मूल्यांकन, शारीरिक परीक्षण, रक्त परीक्षण आदि किया जा सकता है, और इलाज विकल्प में दवाओं, जीवनशैली में बदलाव आदि शामिल हो सकता है। इओसिनोफिलिया के रोकथाम के लिए शारीरिक स्वास्थ को बनाये रखना, कम पके मांस का सेवन ना करना, परजीवियों से बचना, दवाओं के इस्तमाल में सावधानी बरतना आदि हो सकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है की इओसिनोफिलिया एक गंभीर शारीरिक समस्या हो सकती है इसलिए इसके इलाज और निदान के लिए डॉक्टर से अवश्य सम्पर्क करें।

इओसिनोफिलिक अस्थमा क्या होता है?

इओसिनोफिलिक अस्थमा के लक्षण अन्य समान अस्थमा की तरह ही होता है जिसमे श्वसन नाली में सूजन आ जाती और साँस लेने में कठनाई आती है। लेकिन इओसिनोफिलिक अस्थमा के होने का मुख्य कारण श्वेत रक्त कण में आसमान रूप से वृद्धि होना होता है। अक्सर इओसिनोफिलिक अस्थमा युवा अवस्था में अधिक देखने को मिलता है जिसकी उम्र 25 से 35 के आयु के बिच में होती है। इसके इलाज में देरी और कोताही बरतने से इओसिनोफिलिक अस्थमा का इलाज करना बहुत मुश्किल हो सकता है इसलिए इस मामले में डॉकटर को तुरंत दिखाएँ।

संदर्भ

  1. Kanuru, Sruthi, and Amit Sapra. “Eosinophilia.” (2020). ↩︎
  2. Insiripong, Somchai, and Nirada Siriyakorn. “Treatment of eosinophilia with albendazole.Southeast Asian journal of tropical medicine and public health 39.3 (2008): 517. ↩︎
  3. Kuang, Fei Li. “Approach to patients with eosinophilia.Medical Clinics 104.1 (2020): 1-14. ↩︎

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