लटजीरा: जानें इसके फायदे और संभावित नुकसान

लटजीरा का पौधा अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। हालांकि कुछ लोगों इसको केवल एक झाड़ीदार पौधा समझने की भूल कर बैढ़ते हैं। आइये चिरचिटा या लटजीरा के फायदे और नुकसान के बारे में विस्तार से समझते हैं।

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Anshika Sharma

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लटजीरा (Latjeera) एक बारहमासी झाड़ीदार पौधा है जो हमारे खेत खलिहानों, सड़कों के किनारों पर आसानी से दिख जाता है। अक्सर लोग इस पौधे को मात्र एक झड़ी समझने की भूल कर बैठते हैं। लेकिन लटजीरा एक औषधीय पौधा है जिसके कई स्वास्थ्य फायदे प्राप्त किये जा सकते हैं।

लटजीरा के पौधे को चिरचिटा (Chirchita), अपामार्ग आदि कई नामों से जाना जाता है। इसको अंग्रेजी में Chaff-Flower, Prickly Chaff Flower, Devil’s Horsewhip नामों से पुकारा जाता है।  इसका वनस्पतिक नाम अचिरांथेस एस्पेरा (Achyranthes aspera) है जो की अमरेन्थेसी (Amaranthaceae) परिवार से संबंधित है।

चिरचिटा के फायदे | Chirchita ke fayde

लटजीरा का पौधा 30 से 200 सेमी उचाई तक बढ़ सकता है। जैसे-जैसे यह बढ़ता है, इसकी तना थोड़ी कठोर हो जाती है। इसकी पत्तियाँ सरल और विपरीत दिशा में होती हैं। इसकी पत्तियों की लंबाई लगभग 15 सेमी तक होती है और उनमें हल्के बाल हो सकते हैं। इसके फूल हरे से लेकर गुलाबी-लाल रंग के होते हैं। जब ये फूल परिपक्व हो जाते हैं तो नीचे की ओर मुड़ जाते हैं।  इसका फल छोटा (लगभग 1.6-2.5 मिमी) कैप्सूल जैसा होता है, जिसमें बीज होते हैं। इसके फल के नीचे की तरफ नुकीले हिस्से होते हैं, जो आसानी से जानवरों के फर और इंसानों के कपड़ों में चिपक जाते हैं।

यहाँ आपको लटजीरा के फायदे और नुकसान से जुडी विस्तृत जानकारी मिलेगी।

लटजीरा के फायदे

लटजीरा का उपयोग विभिन्न पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में स्वास्थ्य लाभों के लिए सदियों से होता आया है। इसके तने और जड़ का उपयोग दातुन के तौर पर किया जाता है क्योकि इसके दातुन को दातों के दर्द को कम करने और बैक्टीरिया को मारने में प्रभावी माना जाता है।1

1. एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि प्रदर्शित कर सकता है।

लटजीरा में कार्बोहाइड्रेट, फेनोलिक यौगिक, सैपोनिन, एल्कलॉइड, और टैनिन जैसे महत्वपूर्ण फाइटोकेमिकल पाए जाते हैं, यह योगक एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि प्रदर्शित करते हैं।

एक अध्ययन में यह पाया गया की लटजीरा के तनों से प्राप्त मेथनॉल अर्क और जलीय अर्क ने एंटीऑक्सीडेंट क्षमता को दिखया, जो हानिकारक मुक्त कणों के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभातें हैं। हालाँकि मेथनॉल अर्क का एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव जलीय अर्क की तुलना में अधिक प्रभावी पाया गया। साथ ही दोनों अर्क ने सीमित रोगाणुरोधी और हेमोलिटिक गतिविधियाँ भी दिखाईं, लेकिन उनके एंटीऑक्सीडेंट गुण उल्लेखनीय था।2

एक अन्य जांच में लटजीरा के जड़ के अर्क में उच्च स्तर के फेनोलिक यौगिक (Phenolic Compounds) पाए गए जो मुक्त कणों के प्रभाव को रोकने और कम करने वाले एजेंटों के रूप में कार्य करने में सक्षम होते हैं।3

2. कैंसर के रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

लटजीरा (चिरचिटा) में कैंसर रोधी प्रभाव पाए जाते हैं जो कैंसर कोशिकाओं के वृद्धि को रोखने में मदद कर सकता है।

एक अध्ययन में लटजीरा के पत्तों से प्राप्त मेथनॉल अर्क का उपयोग पैंक्रियाटिक कैंसर के रोकथाम के लिए किया गया। परिणामों में यह पाया गया कि इस अर्क ने विशेष रूप से उन प्रोटीनों का स्तर कम किया जो ट्यूमर वृद्धि और रक्त वाहिकाओं के निर्माण में शामिल होते हैं। यह शोध लटजीरा के पत्तों की ट्यूमर कोशिकाओं को मारने की क्षमता को दर्शाता है। हालाँकि अधिक शोध की आवश्यकता है।4

एक अन्य अध्ययन में लटजीरा जड़ के एथेनॉलिक और जलीय अर्क का कोलन कैंसर की कोशिकाओं के रोकथाम के प्रभाव का मूल्यांकन किया गया। नतीजे दर्शाते हैं की लटजीरा के जलीय अर्क कोलोन कैंसर की कोशिकाओं को मारने में अधिक प्रभावी है। लटजीरा का जड़ कैंसर कोशिकाओं को खुद को नष्ट करने के लिए प्रेरित करता है और उनके बढ़ने को रोकता है।5

3. घाव भरने में मदद कर सकता है

लटजीरा का उपयोग परम्परिक चिकित्सा में घाव को तेजी से भरने के लिए लम्बे समय से किया जाता रहा है।

लटजीरा में बैक्टीरिया, फंगस और परजीवियों के खिलाफ मजबूत गतिविधि पाई जा सकती है जिसके कारण यह संक्रमण को रोकने, सूजन को कम करने, ऊतकों की मरम्मत करने में  मददगार हो सकती हैं। सम्भतः यह घाव को तेजी से भरने में महत्वपूर्ण है।6

एक अध्ययन में लटजीरा (अपामार्ग) के पत्तों के इथेनॉल और जलीय अर्क का उपयोग करके घाव भरने और एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि का मूल्यांकन किया गया। यह पाया गया की अर्क ने घाव को भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, साथ ही मुक्त कणों के गठन को रोककर अच्छा एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव प्रदर्शित किया।7

4. गुर्दे के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकता है।

एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने लटजीरा के जलीय अर्क के साथ इथिलीन ग्लाइकोल (Ethylene Glycol) रसायन से प्रभावित किये गए चूहों का इलाज किया। परिणाम आशाजनक थे: लटजीरा ने न केवल गुर्दे की चोट के प्रमुख मार्करों को सामान्य किया, बल्कि गुर्दे के ऊतकों की समग्र संरचना में भी सुधार किया। इसके अतिरिक्त, इसने गुर्दे की पथरी (कैल्शियम ऑक्सालेट) के आकार को कम करने में मदद की, जिससे उन्हें बाहर निकालने में आसानी हुई।8

यह निष्कर्ष बताते हैं कि लटजीरा गुर्दे के कार्य को प्रभावी ढंग से बनाए रख सकता है और गुर्दे की क्षति को कम कर सकता है, जो गुर्दे की पथरी से ग्रस्त लोगों के लिए एक प्राकृतिक उपचार के रूप में इसकी क्षमता को उजागर करता है। हालाँकि यह सिमित शोध से प्राप्त नतीजे हैं, सटीक परिणामों के लिए और अधिक शोध की आवस्यकता है।

5. अल्सर-रोधी गतिविधि प्रदर्शित कर सकता है।

लटजीरा पेट में अल्सर के जोखिमों को कम करने महत्वपूर्ण  भूमिका निभा सकता है। क्योकि इसमें गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव प्रभाव पाया जाता है जो पेट की अंदरूनी परत को क्षति से बचाने में मदद करती हैं।

एक अध्ययन में लटजीरा की पत्तियों के अर्क की पेप्टिक अल्सर से सुरक्षा करने की क्षमता का मूल्यांकन किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि पेप्टिक अल्सर से प्रेरित चूहों को अर्क देने से गैस्ट्रिक रस की मात्रा और कुल अम्लता कम हुई, गैस्ट्रिक पीएच में काफी वृद्धि हुई थी। जिससे अल्सर का गठन काफी कम हुआ और पेट के स्वास्थ्य में सुधार हुआ। यह प्रभाव संभवतः पौधों के यौगिकों जैसे फ्लेवोनॉइड्स, सैपोनिन और टैनिन की उपस्थिति के कारण था।9

6. तनाव प्रेरित अवसाद में सुधार कर सकता है।

लटजीरा तनाव के कारण होने वाले अवसाद को कम करने में उपयोगी हो सकता है।

चूहों पर हुए एक अध्ययन में पाया गया कि लटजीरा के पौधे का अर्क देने से चूहों को बेहतर महसूस करने में मदद मिली। अर्क ने उन्हें खुश रखने, अधिक सक्रिय और कम चिंतित रहने में मदत किया। इसने उनके दिमाग में तनाव हार्मोन और सूजन को कम करने में भी मदद की।10

इस शोध के नतीजे बताते हैं कि लटजीरा अवसाद के लिए एक संभावित प्राकृतिक उपचार हो सकता है। हालांकि, ये नतीजे केवल पशुओं पर किए गए शोध से प्राप्त हुए हैं, इसलिए मनुष्यों पर इसके प्रभावों के बारे में सटीक जानकारी के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।

लटजीरा के संभावित नुकसान और सावधानियां

हालांकि लटजीरा को आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है, लेकिन इसके कुछ संभावित नुकसान नीचे दिए गए हैं।

महिलाओं के लिए लटजीरा के नुकसान:

गर्भवती महिलाएं या वे महिलाएं जो गर्भधारण की योजना बना रही हैं उनको लटजीरा ( चिरचिटा ) के उपयोग में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। क्योकि लटजीरा में गर्भावस्था अवरोधी प्रभाव पाया जाता है जो गर्भ के लिए नुकसानदायक हो सकता है।1112

पुरुषों के लिए लटजीरा के नुकसान:

चूहों पर हुए अध्ययन ने पाया कि लटजीरा ( चिरचिटा ) के इथेनॉल अर्क को खिलाने से नर चूहों में प्रजनन समस्याएं उत्पन्न हुईं। अर्क ने शुक्राणु की संख्या, एपिडीडिमिस का आकार, टेस्टोस्टेरोन का स्तर और टेस्टोस्टेरोन उत्पादन में शामिल एंजाइम की गतिविधि को कम कर दिया। नर चूहों पर लटजीरा के प्रभाव के इन परिणामों से पता चलता है कि इसका अर्क टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन को कम करके नर प्रजनन कार्य को नुकसान पहुंचा सकता है। हालाँकि मनुष्यों पर इसके प्रभाव के सटीक परिणामों के लिए अधिक शोध की आवशयकता है।13

गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और किसी दवा के साथ लटजीरा के प्रयोग करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करना उचित होगा।

निष्कर्ष

लटजीरा या चिरचिटा एक औषधीय पौधा है जिसका उपयोग परंरपरिक चिकित्सा में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए सदियों से होता आया है।

हालांकि लटजीरा के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं, लेकिन कुछ परिस्थितियों में यह नुकसानदायक भी हो सकता है। इसलिए, इसे किसी भी रूप में उपयोग करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करना आवश्यक है।

संदर्भ

  1. Sikarwar, R. L. S., et al. “A bird’s eye view of plants used as toothbrush in India: past and present.” Journal of Traditional and Folk Practices (JTFP) 8.2 (2020). ↩︎
  2. Priya, Charles Lekhya, et al. “Antioxidant activity of Achyranthes aspera Linn stem extracts.” Pharmacologyonline 2.2 (2010): 228-237. ↩︎
  3. Rama, Purushothaman, et al. “In vitro antioxidant activity of Achyranthes aspera Linn.Int J Med Pharm Sci 3.2 (2013): 67-78. ↩︎
  4. Subbarayan, Pochi R., et al. “Anti-proliferative and anti-cancer properties of Achyranthes aspera: specific inhibitory activity against pancreatic cancer cells.” Journal of ethnopharmacology 131.1 (2010): 78-82. ↩︎
  5. Arora, Shagun, and Simran Tandon. “Achyranthes aspera Root Extracts Induce Human Colon Cancer Cell (COLO‐205) Death by Triggering the Mitochondrial Apoptosis Pathway and S Phase Cell Cycle Arrest.” The Scientific World Journal 2014.1 (2014): 129697. ↩︎
  6. Ndhlala, Ashwell R et al. “Antimicrobial, Anthelmintic Activities and Characterisation of Functional Phenolic Acids of Achyranthes aspera Linn.: A Medicinal Plant Used for the Treatment of Wounds and Ringworm in East Africa.Frontiers in pharmacology vol. 6 274. 23 Nov. 2015, doi:10.3389/fphar.2015.00274 ↩︎
  7. Edwin, S., et al. “Wound healing and antioxidant activity of Achyranthes aspera.Pharmaceutical biology 46.12 (2008): 824-828. ↩︎
  8. Aggarwal, Anshu et al. “Preventive and curative effects of Achyranthes aspera Linn. extract in experimentally induced nephrolithiasis.” Indian journal of experimental biology vol. 50,3 (2012): 201-8. ↩︎
  9. Das, Ashish K et al. “Gastroprotective effect of Achyranthes aspera Linn. leaf on rats.” Asian Pacific journal of tropical medicine vol. 5,3 (2012): 197-201. doi:10.1016/S1995-7645(12)60024-8 ↩︎
  10. Gawande, Dinesh et al. “Achyranthes aspera ameliorates stress induced depression in mice by regulating neuroinflammatory cytokines.” Journal of traditional and complementary medicine vol. 12,6 545-555. 15 Jun. 2022, doi:10.1016/j.jtcme.2022.06.001 ↩︎
  11. Vasudeva, Neeru, and S K Sharma. “Estrogenic and pregnancy interceptory effects of Achyranthes aspera Linn. root.” African journal of traditional, complementary, and alternative medicines : AJTCAM vol. 4,1 7-11. 28 Aug. 2006, doi:10.4314/ajtcam.v4i1.31185 ↩︎
  12. Vasudeva, Neeru, and S K Sharma. “Post-coital antifertility activity of Achyranthes aspera Linn. root.” Journal of ethnopharmacology vol. 107,2 (2006): 179-81. doi:10.1016/j.jep.2006.03.009 ↩︎
  13. Sandhyakumary, K et al. “Impact of feeding ethanolic extracts of Achyranthes aspera Linn. on reproductive functions in male rats.” Indian journal of experimental biology vol. 40,11 (2002): 1307-9. ↩︎

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