हमारे स्वास्थ्य पर भटवास के फायदे और नुकसान | Hill Glory Bower Benefits

भटवास या भट अपने औषधीय गुणों के कारण स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में फादेमंद हो सकता है। हालाँकि इस पौधे के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं होने के कारण हम इसे एक झड़ी मात्र ही समझ लेते हैं। चलिए भटवास के फायदों को विस्तार से समझते हैं।

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Anshika Sharma

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आयुर्वेद में वर्णित अन्य औषधीय पौधों के भांति भटवास का पौधा भी औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं इसलिए इसके स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभों की एक विस्तृत श्रंखला पाई जाती हैं। भारत में तो अक्सर यह पौधा सड़कों, खलिहानों, जंगलों के आस-पास दिखाई दे जाता है, लेकिन हम इसके तरफ बहुत अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं क्योकि हमारा ज्ञान इस पौधे और इस पौधे के लाभों को लेकर बहुत कम होता है।

इसलिए चलिए भटवास (Hill Glory Bower) की पहचान से लेकर इसके फायदों और कुछ संभावित नुकसान व सावधानियां के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।

भटवास की पहचान

भटवास के पौधे को भांट या भट, भटेस इंग्लिश में हिल ग्लोरी बोवर (Hill Glory Bower) के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम क्लेरोडेंड्रम इन्फोर्टुनाटम (Clerodendrum Infortunatum) है जो पौधे की लैमियासी (Lamiaceae) परिवार से संबंधित है। 

भटवास मुख्य रूप से उष्णकटबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है इसलिए यह भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान, और श्रीलंका आदि देशों में पाया जाता है। यह एक प्रकार का छोटा पौधा या पेड़ है जिसका तना सीधा होता है। इसका फूल सुगंधित और सफेद, बैंगनी गुलाबी या हल्के-बैंगनी रंग के होते हैं। इसका फल गोलाकार होता है जो पकने के बाद गहरे नील रंग या काले रंग का हो जाता है।

स्वास्थ्य सम्बन्धी भटवास के फायदे

भटवास के प्रत्येक भाग यानी फूल, पत्ते, तना, और जड़ में औषधीय गुण मौजूद होते हैं इसलिए इनके स्वास्थ्य पर विभिन्न फायदे देखे जा सकते हैं।

सूजन को कम करने में लाभकारी

पारंपरिक रूप से भटवास का उपयोग शरीर में उत्त्पन किसी भी प्रकार की सूजन को कम करने के लिए किया जाता है। इसके पत्तों के अर्क का सेवन या इसके पेस्ट को सूजन वाली जगह पर लगा कर सूजन को कम किया जाता है। क्योकि इसमें एपिगेनिन और अकासेटिन जैसे फ्लेवोनोइड्स पाए जाते हैं जो की उच्च सूजन रोधी और एंटीऑक्सीडेंट क्षमता प्रदर्शित करते हैं।1

कोलेस्ट्रॉल के नियंत्रण में योगदान

कोलेस्ट्रॉल एक प्रकार का वसा होता है जो हमारे शरीर के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन इसकी अधिकता हो जाने से मोटापा, हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी गंभीर बिमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है। भटवास कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित रखने में योगदान दे सकता है क्योकि इसमें विभिन्न स्टेरोल्स योगिक पाए जाते हैं। स्टेरोल्स योगिक कोलेस्ट्रॉल के स्तर में कमी ला सकते हैं और कोलेस्ट्रॉल के निर्माण को भी धीमा कर सकते हैं। इसलिए भटवास मोटापा हृदय संबंधी स्वास्थ्य में फायदेमंद हो सकता है।2 3

मुँह के स्वास्थ के लिए लाभदायक

भटवास के तने का उपयोग दातुन की तरह इस्तेमाल किया जाता है जो मसूड़ों में सूजन, अन्य घाव, दंत क्षय, दांत दर्द और मुँह में पनपने वाले बैक्टीरिया को खत्म करके मुँह और दातों के स्वास्थ्य को बढ़ने में फायदेमंद हो सकता है। क्योकि इसमें कई प्रकार के फ्लेवोनोइड्स पाए जाते हैं जो इसे सूजन-रोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुण प्रदान करते हैं। 

पाचन व पेट सम्बन्धी समस्याओं के लिए फायदेमंद

भटवास पाचन को बेहतर कर सकता है। इसके अतिरिक्त पेट दर्द, दस्त आदि पेट सम्बन्धी समस्याओं को ठीक करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। क्योकि इसके पत्तों में सैपोनिन योगिक पाए जाते हैं, यह एक प्रकार का प्राकृतिक झाग पैदा करने वाला योगिक है, जो पेट सम्बन्धी शिकायतों जैसे कब्ज, दस्त, पेट में ऐंठन, अपच आदि को दूर कर सकता है। लेकिन सैपोनिन की अधिकता शरीर के लिए हानिकारक भी हो सकता है।

बुखार को कम करने में मदतगार

परम्परिक चिकित्सा पद्धतियों में भटवास को ज्वार नाशक या बुखार को कम करने के लिए उपयोग किया जाता रहा है। जिसके लिए इसके पत्तों और तने का काढ़ा का सेवन या इसके पत्तों को चबाने के रूप में किया जा है। भटवास में पाए जाने वाले टैनिन और फ्लेवोनोइड्स और अन्य योगिक बुखार को कम करने में योगदान दे सकते हैं।

घाव को ठीक करने में तेजी

कई अध्यनों में  यह पाया गया है की भटवास घाव को तेजी से भरने में कारगर साबित हो सकता। इसके पीछे का मुख्य कारण इसमें पाए जाने वाले फिनोलिक्स और फ्लेवोनोइड जैसे विभिन्न योगिक हैं जो की एक मजबूत एंटीऑक्सीडेंट और औषधीय गतिविधियों को प्रदर्शित करते हैं। हालाँकि इसका उपयोग घाव के लिए पारम्परिक चिकित्सा में पहले से होता आया है, जिसमें इसके पत्ते के पेस्ट को घाव पर लगया जाता है।4

कैंसर रोगी गुण

कई अध्ययनों से प्राप्त निष्कर्ष इस और संकेत करते हैं की भटवास कैंसर जैसे गंभीर समस्याओं में फायदेमंद हो सकता है इसके पीछे का मुख्य कारण इसमें पाए जाने वाले एल्कलॉइड, फ्लेवोनोइड्स और टेरपेनोइड्स जैसे फाइटोकेमिकल योगिक की मुख्य भूमिका हो सकती है।5 इसके अतिरिक्त स्तन कैंसर में भी भटवास अर्क के प्रभाव सकारात्मक देखे गए हैं।6

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परम्परिक चिकित्सा में भटवास का उपयोग

पारम्परिक और स्थानीय चिकित्सा पद्धतियों में भटवास का उपयोग विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता रहा है7 जैसे:-

  • बुखार, खांसी, सर्दी
  • सांप के काटने में
  • त्वचा रोगों
  • कृमिनाशक
  • मधुमेह
  • दांत दर्द
  • श्वसन रोगों (कफनाशक)
  • घाव भरने में

स्वास्थ्य सम्बन्धी भटवास के नुकसान और सावधानियां

भटवास का सेवन कई प्रकार के शारीरिक नुकसान का कारण भी बन सकता है, इसलिए इसके उपयोग में सावधानी बरतना जरूरी हो जाता है। भटवास के नुकसान और सावधानियों के बारे में निम्नलखित दर्शाए गए हैं:-

भटवास में मौजूद सैपोनिन योगिक कई समस्याएं उजागर कर सकता है हालाँकि लम्बे समय तक या अधिक मात्रा में सैपोनिन का सेवन ही नुकसान का कारण बनता है। जिससे स्वास्थ्य समस्याएं जैसे अत्यधिक लार आना, दस्त, उल्टी, भूख न लगना देखने को मिल सकते हैं।

भटवास के सेवन से एलर्जी होने की संभावनाओं को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है जिसके कारण त्वचा पर लालिमा, चकत्ते, खुजली, आदि हो सकते हैं। हालाँकि भटवास से एलर्जी के लक्षण कम ही देखने को मिलता है।

भटवास के तने, पत्ते आदि का स्वाद थोड़ा कड़वा होता है इसलिए इसका सेवन कुछ लोगों के लिए चुनोतीपूर्ण हो सकता है।

निष्कर्ष

भटवास (Hill Glory Bower) उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है इसका पौधा सीधा होता है जो एक झाडी जैसा प्रतीत होता है। इसको भांट या भट, भटेस आदि नामों से भी जाना जाता है। भटवास का उपयोग परम्परिक चिकित्सा पद्धति में सदियों से विभिन्न शारीरिक समस्याओं व रोगों को दूर करने के लिए किया जाता रहा है जैसे दातुन के रूप में मुँह के स्वास्थ्य के लिए, बुखार, खांसी, सर्दी, सांप के काटने में, त्वचा रोगों, कृमिनाशक, मधुमेह, दांत दर्द, घाव भरने में आदि।

हालाँकि भटवास के फायदे कई हैं लेकिन इसके नुकसान की भी कुछ संभावनाएं होती है। भटवास के नुकसान जैसे इसमें पाए जाने वाले योगिक सैपोनिन के कारण अत्यधिक लार आना, दस्त, उल्टी, भूख न लगना आदि हो सकता है, और कुछ लोगों में एलर्जी के लक्षण भी देखने को मिल सकते हैं। इसलिए भटवास के उपयोग में सावधानी बरते और किसी स्वास्थ्य समस्या होने पर डॉक्टर से जरूर परामर्श करें।

संदर्भ

  1. Das, Sudipta, et al. “Evaluation of anti-inflammatory activity of Clerodendron infortunatum Linn. extract in rats.Global J Pharmacol 4.1 (2010): 48-50. ↩︎
  2. Devi, Rajlakshmi, and DK14698510 Sharma. “Hypolipidemic effect of different extracts of Clerodendron colebrookianum Walp in normal and high-fat diet fed rats.Journal of Ethnopharmacology 90.1 (2004): 63-68. ↩︎
  3. Sarkar, Pankaj Kumar, et al. “Isolation and characterization of anti-diabetic compound from Clerodendrum infortunatum L. leaves.South African Journal of Botany 142 (2021): 380-390. ↩︎
  4. Gouthamchandra, K., R. Mahmood, and H. Manjunatha. “Free radical scavenging, antioxidant enzymes and wound healing activities of leaves extracts from Clerodendrum infortunatum L.Environmental Toxicology and Pharmacology 30.1 (2010): 11-18. ↩︎
  5. Haris, M., et al. “In vitro cytotoxic activity of Clerodendrum infortunatum L. Against T47D, PC-3, A549 and HCT-116 human cancer cell lines and its phytochemical screening.Int J Pharm Pharm Sci 8 (2016): 439-44. ↩︎
  6. Shendge, Anil Khushalrao, Tapasree Basu, and Nripendranath Mandal. “Evaluation of anticancer activity of Clerodendrum viscosum leaves against breast carcinoma.Indian Journal of Pharmacology 53.5 (2021): 377. ↩︎
  7. Kekuda, TR Prashith, et al. “Ethnobotanical uses, phytochemistry and pharmacological activities of Clerodendrum infortunatum L.(Lamiaceae): A review.Journal of Drug Delivery and Therapeutics 9.2 (2019): 547-559. ↩︎

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