पुरुषों के स्वास्थ्य में टेस्टोस्टेरोन की भूमिका

पुरुष स्वास्थ्य को समझने के लिए पुरुष हार्मोन जैसे टेस्टोस्ट्रोन के बारे में समझना बहुत अनिवार्य है। इसलिए पुरुषों के स्वास्थ्य में टेस्टोस्टेरोन की क्या भूमिका होती है चलिए सभी पहलुओं को समझते हैं।

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Brijesh Yadav

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हार्मोन (Harmon) या ग्रन्थिरस हमारे शारीरिक विकास, क्रिया-प्रतिक्रिया, व्यवहार, आदि के लिए जिम्मेदार होते है जो कहीं ना कहीं हमारे पूर्ण स्वस्थ को बेहतर बनाए रखने के लिए भी मददगार होते हैं। इसलिए इनका शरीर में संतुलित होना भी बहुत जरूरी भी होता है। 

 

पुरुष और महिला की शारीरिक संरचना भिन्न होती है, इसलिए कुछ विशेष प्रकार के हार्मोन होते हैं जो केवल महिलाओं या पुरुषों में ही पाए जाते हैं जैसे “टेस्टोस्टेरोन” (Testosterone) जो मुख्य रूप से पुरुषों में पाया जाता है। इसलिए इसे पुरुष हार्मोन (male Harmon) के नाम से भी जाना जाता है।

टेस्टोस्टेरोन हार्मोन मांसपेशियों और हड्डियों के घनत्व आदि शारीरिक लाभों से लेकर मानसिक क्षमताओं के भी बेहतर कार्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इसकी उपस्थिति या अनुपस्थिति पुरुषों के समग्र स्वास्थ्य और जीवन शक्ति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।

इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हम पुरुषों के स्वास्थ्य में टेस्टोस्टेरोन की अहम भूमिका के साथ इसके कार्यों, प्रभावों और संभावित असंतुलन के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, साथ ही इससे जुड़े मिथ्यों को भी समझेंगे।

इसलिए चाहे आप अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की चाहत रखने वाले व्यक्ति हों या पुरुषों के जीवन में टेस्टोस्टेरोन की महत्वपूर्ण भूमिका को समझने में रुचि रखने वाले व्यक्ति हों, यह ब्लॉग पोस्ट मूल्यवान और महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

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टेस्टोस्टेरोन की संक्षिप्त परिभाषा 

टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) मुख्य रूप से पुरुषों में पाए जाने वाला हार्मोन हैं जो एण्ड्रोजन हार्मोन के वर्ग से संबंधित है। (एण्ड्रोजन हार्मोन भी मुख्य रूप से पुरुषों में पाए जाने वाले हार्मोन में से है)। टेस्टोस्टेरोन की रासायनिक संरचना के कारण इसे स्टेरॉयड हार्मोन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन मुख्य रूप से पुरुषों के वृषण (Testis) में उत्पादन होता है। हालांकि यह महिलाओं के अंडाशय में भी उत्पन्न होता लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम होती है।

पुरुषों में, टेस्टोस्टेरोन युवावस्था के दौरान मर्दाना विशेषताओं के विकास के लिए जिम्मेदार होता है, जिसमें आवाज का गहरा होना, चेहरे और शरीर पर बालों का बढ़ना और मांसपेशियों में वृद्धि आदि शामिल है।

पुरुषों के स्वास्थ्य पर टेस्टोस्टेरोन का प्रभाव

टेस्टोस्टेरोन, जिसे अक्सर “पुरुष हार्मोन” कहा जाता है, पुरुषों के समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  इसका प्रभाव यौवन के दौरान मर्दाना विशेषताओं के विकास से कहीं आगे तक फैला हुआ है। तो चलिए जानते हैं की टेस्टोस्टेरोन पुरुषों में प्रजनन स्वास्थ्य, शारीरिक कल्याण और मानसिक तौर पर किस प्रकार प्रभाव डालता है।

टेस्टोस्टेरोन और प्रजनन स्वास्थ्य:

यौन विकास: टेस्टोस्टेरोन पुरुषों में यौन अंगों को आकार देने और विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लिंग और अंडकोश की वृद्धि को सुनक्षित करता है और अंडकोश के कार्यों को भी नियंत्रित करता है। इसके अतरिक्त टेस्टोस्टेरोन योनावस्था से जुड़े अन्य विशेषताओं के विकास के लिए जिम्मेदार होता है, जैसे मांसपेशियों में वृद्धि, कंधों का चौड़ा होना और शरीर पर बालों का बढ़ना।

शुक्राणु उत्पादन: पुरुषों में शुक्राणु उत्पादन की प्रक्रिया में टेस्टोस्टेरोन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह वृषण को शुक्राणु कोशिकाओं का उत्पादन करने के लिए उत्तेजित करता है,जो पुरुष में प्रजनन क्षमता और प्रजनन के लिए बहुत जरूरी है।

टेस्टोस्टेरोन और शारीरिक स्वास्थ्य:

मांसपेशियों और ताकत का विकास: टेस्टोस्टेरोन एक एनाबॉलिक हार्मोन है, जिसका अर्थ है कि यह ऊतकों का विकास करने में एक अहम भूमिका निभाता है जिससे शरीर बलवान बनाता है। टेस्टोस्टेरोन मांसपेशियों में प्रोटीन के संश्लेषण को प्रभावित करता है, जो मासपेशियों में ताकत बढ़ता है। इसलिए टेस्टोस्टेरोन के सबसे प्रसिद्ध कार्यों में से एक मांसपेशियों और ताकत को बढ़ाना है।

हड्डियों के स्वास्थ्य में विकास: टेस्टोस्टेरोन हड्डियों के घनत्व और मजबूती को बनाए रखने में भी एक अहम भूमिका निभाता है। यह ऑस्टियोब्लास्ट (हड्डी बनाने वाली कोशिकाएं) और ऑस्टियोक्लास्ट (हड्डी तोड़ने वाली कोशिकाएं) की गतिविधि को प्रभावित करके हड्डी के कामकाज को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसलिए हड्डियों से जुड़ी बीमारी जैसे ऑस्टियोपोरोसिस जैसी स्थितियों को रोकने और फ्रैक्चर के जोखिम को कम करने के लिए शरीर में टेस्टोस्टेरोन का उचित मात्रा में होना बहुत महत्वपूर्ण है।

वसा और वजन प्रबंधन: टेस्टोस्टेरोन शरीर में वसा के चयापचय और वितरण को प्रभावित करता है। कम टेस्टोस्टेरोन का स्तर शरीर में वसा, विशेष रूप से पेट की वसा में वृद्धि से जुड़ा हुआ है। यानी कम टेस्टोस्टेरोन मोटापा बढ़ा सकता है। इसके विपरीत, उच्च टेस्टोस्टेरोन स्तर बनाए रखने से वजन को नियंत्रित रखने और स्वस्थ शरीर संरचना को बनाए रखने में मदद मिल सकती है।

ऊर्जा स्तर और जीवन शक्ति: टेस्टोस्टेरोन पुरुषों में ऊर्जा के स्तर और समग्र जीवन शक्ति को बढ़ाने में मदत करता है। यह थकान और सुस्ती जैसे लक्षण को भी कम करने में मदत करता है, जिससे हम चुस्त और ऊर्जावान महसूस करते हैं। 

टेस्टोस्टेरोन और मानसिक स्वास्थ्य:

मानसिक स्वास्थ: जिन पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम मात्रा में होता है उनमें चिंता, उदासी और चिड़चिड़ापन जैसे लक्षणों को देखा जा सकता है। टेस्टोस्टेरोन का शरीर में उचित मात्रा में होने से मानशिक स्वास्थ बेहतर होता है जिससे मानसिक रोगों के लक्षण कम देखने को मिलते हैं।

दिमाग के कार्यकुशलता में सुधार: कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि टेस्टोस्टेरोन प्रयाप्त मात्रा में होने से यादाश्त, ध्यान लगाने, याद रखने आदि जैसे दिमागी कार्यों में सुधार होता है। हालाँकि, इसपर अभी विस्तृत शोध होना बाकी है।

यहां टेस्टोस्टेरोन की संतुलित मात्रा के कुछ प्रमुख प्रभावों का ही जिक्र किया गया है, हालांकि इसके अन्य कई लाभ व प्रभाव भी हो सकते हैं। और टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के इन लाभों को साबित व सुनक्षित करने के लिए अभी कई तरह के शोध हो रहें हैं।

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टेस्टोस्टेरोन के स्तर को प्रभावित करने वाले कारक

पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर कई कारकों से प्रभावित हो सकता है, जो आंतरिक और बाहरी हो सकते हैं। शरीर में टेस्टोस्टेरोन का संतुलित स्तर को बनाए रखने के लिए उन कारकों को समझना आवश्यक है जो इसको किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करते हैं। यहां कुछ प्रमुख कारक दिए गए हैं जो टेस्टोस्टेरोन के स्तर को प्रभावित कर सकते हैं:

आयु: किशोरावस्था के दौरान, जब एक लड़के का शरीर विकाशित हो रहा होता है, टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन अपने चरम पर होता है। हालाँकि, जैसे-जैसे पुरुषों की उम्र बढ़ती जाती है, टेस्टोस्टेरोन का स्तर धीरे-धीरे कम होने लग जाता है।

हालांकि उम्र के बढ़ने के साथ टेस्टोस्टेरोन में गिरावट आना एक प्राकृतिक अवस्था है, जिसे अक्सर “एंड्रोपॉज़” या “पुरुष रजोनिवृत्ति” कहा जाता है। यह स्थिति आमतौर पर 30 या 40 वर्ष की उम्र के आसपास होना शुरू होती है और जीवन भर जारी रहती है।

जीवनशैली और आहार: जीवनशैली में कुछ तरह के बदलाव भी टेस्टोस्टेरोन के स्तर को प्रभावित कर सकते हैं।  नियमित रूप से शारीरिक गतिविधि, उच्च तीव्रता वाले व्यायाम, टेस्टोस्टेरोन उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।

दूसरी ओर, व्यायाम, और शारीरिक गतिविधि नही  करने से और शरीर में अधिक चर्बी होने से (विशेष रूप से पेट की चर्बी) टेस्टोस्टेरोन के स्तर को कम कर सकती है। इसके अलावां, संतुलित आहार जिसमें जिंक, विटामिन और स्वस्थ वसा जैसे आवश्यक पोषक तत्व शामिल होते हैं, टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

तनाव और नींद: लंबे समय तक तनाव में रहने से टेस्टोस्टेरोन उत्पादन सहित शरीर में हार्मोनल संतुलन को भी अनियमित कर सकता है। अधिक तनाव लेने से कोर्टिसोल स्राव बढ़ जाता है, जो एचपीजी अक्ष के सामान्य कामकाज में खलल डाल सकता है।  इसके अलावा, अपर्याप्त नींद या खराब नींद भी टेस्टोस्टेरोन के स्तर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसलिए तनाव मुक्त रहना और प्रयाप्त अच्छी नीद लेना टेस्टोस्टेरोन के स्तर में सुधार करता है।

चिकित्सीय स्थितियाँ और दवाएँ: कुछ चिकित्सीय स्थितियाँ टेस्टोस्टेरोन उत्पादन को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, ऐसी स्थितियाँ जो वृषण को प्रभावित करती हैं (जैसे, वृषण चोट या संक्रमण) या पिट्यूटरी ग्रंथि (जैसे, पिट्यूटरी ट्यूमर)।  इसके अतिरिक्त, कुछ दवाएं, जैसे ओपिओइड और कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स, टेस्टोस्टेरोन के स्तर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।

शारीरिक संरचना: शरीर में वसा के प्रतिशत का बढ़ जाना यानी मोटापा टेस्टोस्टेरोन के स्तर को प्रभावित कर सकता है। अधिक मोटापा होने से टेस्टोस्टेरोन के स्तर में कमी हो सकती है क्योंकि वसा के ऊतक टेस्टोस्टेरोन को एस्ट्रोजन में परिवर्तित कर सकता है, इस प्रक्रिया को एरोमेटाइजेशन कहा जाता है। जिस कारण से टेस्टोस्टेरोन में कमी आती है।

पर्यावरणीय कारक: कुछ पर्यावरणीय दूषक पदार्थों और रसायन, जैसे कीटनाशकों और फ़ेथलेट्स, के संपर्क में आने से टेस्टोस्टेरोन का स्तर प्रभावित हो सकता है। 

दीर्घकालिक बीमारी और हार्मोनल विकार: कुछ पुरानी बीमारियाँ, जैसे मधुमेह और क्रोनिक किडनी रोग, टेस्टोस्टेरोन के स्तर को प्रभावित कर सकती हैं। इसके अलावां, हाइपोगोनाडिज्म (ऐसी स्थिति जिसमें वृषण पर्याप्त टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन नहीं करते हैं) जैसे हार्मोनल विकार टेस्टोस्टेरोन के स्तर को कम कर सकते हैं।

नशीले पदार्थों का सेवन: अत्यधिक शराब के सेवन और अन्य नशीले पदार्थ का सेवन टेस्टोस्टेरोन के स्तर को प्रभावित करने से जोड़ा गया है।

इसके अतरिक्त अन्य कई कारण भी हो सकते हैं जो टेस्टोस्टेरोन के स्तर को प्रभावित कर सकते हैं, यहां सिर्फ कुछ प्रमुख कारण ही दिए गए हैं। यह ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है की अलग-अलग व्यक्तियों में टेस्टोस्टेरोन को प्रभावित करने वाले कारक भी भिन्न हो सकते हैं।

टेस्टोस्टेरोन का स्तर और उम्र के बीच संबंध

शरीर में टेस्टोस्टेरोन का स्तर जीवन के विभिन्न चरणों में काफी भिन्न होता है, जिसमें  किशोरावस्था और प्रारंभिक वयस्कता के दौरान इसका उत्पादन अपने चरम पर होता है। वयस्क पुरुषों के लिए सामान्य टेस्टोस्टेरोन का स्तर आमतौर पर निम्नलिखित श्रेणियों में आता हैविभिन्न जीवन चरणों में सामान्य टेस्टोस्टेरोन स्तर:-

किशोरावस्था (यौवन): युवावस्था के दौरान, टेस्टोस्टेरोन का स्तर काफी बढ़ जाता है, जो पुरुषों में यौन विशेषताओं के विकास करता है, जैसे चेहरे और शरीर पर बाल, आवाज का गहरा होना और वृषण और लिंग का विकास आदि।

युवा वयस्कता: प्रारंभिक वयस्कता (20 से 30 वर्ष) में, टेस्टोस्टेरोन का स्तर अपने उच्चतम स्तर पर होता है, जिस कारण से इस अवधि के दौरान शारीरिक शक्ति, मांसपेशियों का विकास और अधिक यौन इच्छा अपने प्रबल स्तर पर होती है।

मध्य वयस्कता: 30 से 40 वर्ष की आयु तक, टेस्टोस्टेरोन का स्तर धीरे-धीरे कम होने लगता है, लेकिन अधिकांश पुरुषों में इस दौरान टेस्टोस्टेरोन अपेक्षाकृत स्थिर रहता है।

देर से वयस्कता: 40 या 50 वर्ष की आयु तक, कुछ पुरुषों को टेस्टोस्टेरोन के स्तर में तेजी से गिरावट देखने को मिलता सकता है। और यह गिरावट जीवन के बाद के चरणों में भी जारी रहती है।

उम्र बढ़ने के साथ टेस्टोस्टेरोन में गिरावट:

टेस्टोस्टेरोन का स्तर उम्र बढ़ने के साथ स्वाभाविक रूप से कम हो जाता है, और यह गिरावट की दर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हो सकती है। औसतन, 30 साल की उम्र के बाद टेस्टोस्टेरोन का स्तर प्रति वर्ष लगभग 1% से 2% कम हो जाता है। यह गिरावट उम्र बढ़ने की प्रक्रिया का एक सामान्य हिस्सा है और अक्सर इसे  “एंड्रोपॉज़” या “उम्र से संबंधित टेस्टोस्टेरोन गिरावट” के रूप में देखा जाता है।

टेस्टोस्टेरोन के स्तर और उम्र के बीच संबंध को समझना पुरुषों को अपने स्वास्थ्य के बारे में उचित निर्णय लेने और जरूरत पड़ने पर उचित देखभाल लेने लेने में मदत कर सकता है। 

(हाइपोगोनाडिज्म) कम टेस्टोस्टेरोन की पहचान और इसका प्रभाव

हाइपोगोनाडिज्म एक चिकित्सीय स्थिति है जो पुरुषों में असामान्य रूप से कम टेस्टोस्टेरोन स्तर को दर्शाता है।  यह स्थिति कई विभिन्न कारकों के कारण हो सकती है, जिसमें वृषण संबंधी समस्याएं (प्राथमिक हाइपोगोनैडिज्म) या हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्रंथि (द्वितीयक हाइपोगोनैडिज्म) की समस्याएं शामिल हैं।

कम टेस्टोस्टेरोन होने से कई नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है और विभिन्न लक्षणों को जन्म दे सकता है, जैसे:-

कामेच्छा में कमी: कम टेस्टोस्टेरोन के स्तर के परिणामस्वरूप सेक्स ड्राइव में कमी और यौन गतिविधियों में रुचि कम हो सकती है।

स्तंभन दोष: कुछ मामलों में, कम टेस्टोस्टेरोन स्तंभन प्राप्त करने या बनाए रखने में कठिनाइयों में योगदान कर सकता है।

थकान और कम ऊर्जा: कम टेस्टोस्टेरोन वाले पुरुषों में थकान, कम ऊर्जा स्तर और प्रेरणा की कमी का अनुभव हो सकता है।

मांसपेशियों और ताकत में कमी: कम टेस्टोस्टेरोन से मांसपेशियों और ताकत में गिरावट हो सकती है, जिससे मांसपेशियों की टोन को बनाए रखना कठिन हो जाता है।

शारीरिक वसा में वृद्धि: कम टेस्टोस्टेरोन वाले शरीर में वसा में वृद्धि यानी मोटापा देखा जाता है, खासकर पेट के आसपास।

मूड में बदलाव: कम टेस्टोस्टेरोन वाले कुछ पुरुषों को मूड में बदलाव, चिड़चिड़ापन और उदासी या अवसाद की भावना का अनुभव हो सकता है।

टेस्टोस्टेरोन से जुड़ी मिथक और भ्रांतियाँ

टेस्टोस्टेरोन केवल पुरुषों में होता है: एक सबसे व्यापक मिथक है कि टेस्टोस्टेरोन केवल पुरुषों के शरीर में होता है। वास्तव में, पुरुषों और महिलाओं दोनों के शरीर में टेस्टोस्टेरोन होता है, हालांकि पुरुषों में यह आमतौर पर अधिक स्तर पर होता है।

ज्यादा टेस्टोस्टेरोन आपको आक्रामक और हिंसक बना देता है: हालांकि टेस्टोस्टेरोन आपको उत्साह से भर सकता है इसलिए ऐसा हो सकता है कि आपने आक्रामक व्यवहार उत्पन्न करे, लेकिन आक्रामकता के पीछे विभिन्न कारक शामिल होते हैं, क्योंकि यह एक जटिल प्रक्रिया है। इसलिए केवल टेस्टोस्टेरोन को आक्रामकता के साथ जोड़ कर नहीं देखा जा सकता।

टेस्टोस्टेरोन केवल पुरुष में यौनावस्था की विशेषताओं के विकास के लिए जिम्मेदार है: हालांकि टेस्टोस्टेरोन पुरुषत्व विशेषताओं के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यह अकेला कारण नहीं है। अन्य हार्मोन और आनुवंशिक कारक भी पुरुषत्व विशेषताओं के विकास में योगदान करते हैं।

कम टेस्टोस्टेरोन केवल बड़े उम्र के पुरुषों को प्रभावित करता है: हालांकि यह सत्य है कि टेस्टोस्टेरोन के स्तर उम्र बढ़ने के साथ कम होते हैं, कम टेस्टोस्टेरोन सभी उम्र के पुरुषों को प्रभावित कर सकता है, इसमें युवा पुरुष भी शामिल हैं।

टेस्टोस्टेरोन सप्लीमेंट्स लेने से खेल प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए सुरक्षित और प्रभावशाली हैं: कई टेस्टोस्टेरोन सप्लीमेंट्स दावा करते हैं कि वे खेल प्रदर्शन और मांसपेशियों के विकास को बढ़ाते हैं। हालांकि, इन दावों को समर्थन करने वाले सबूत अभी सीमित हैं, और इस तरह के सप्लीमेंट्स का उपयोग स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा भी पैदा कर सकते हैं।

टेस्टोस्टेरोन बालों को झड़ने का कारण है: हालांकि बालों के झड़ने में आनुवंशिक और हार्मोनल कारक के  अलावां अन्य कई कारक हो सकते हैं। इसलिए केवल  टेस्टोस्टेरोन बालों के झड़ने का एकमात्र कारण नहीं होता है।ब्लेकिन कहीं  ना कहीं टेस्टोस्टेरोन का एक अपशिष्ट, डीहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन (डीएचटी), बालों के झड़ने में अधिक योगदान देता है।

टेस्टोस्टेरोन सभी पुरुषों में काम इच्छा को बढ़ाता है: हालांकि टेस्टोस्टेरोन सेक्स इच्छा पर प्रभाव डाल सकता है, लेकिन यह एकमात्र कारण नहीं है जो किसी व्यक्ति की सेक्सीव प्रारंभ को निर्धारित करता है। इसके अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक,भावनात्मक और संबंध से संबंधित कारक भी सेक्स इच्छा को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ज्यादा टेस्टोस्टेरोन हमेशा बेहतर है: अत्यधिक टेस्टोस्टेरोन स्तर होने से नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव और हार्मोनल असंतुलन हो सकता है। उचित टेस्टोस्टेरोन स्तर व्यक्ति से व्यक्ति भिन्न होते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात है स्वस्थ्य संतुलन का बनाए रखना।

निष्कर्ष:

टेस्टोस्टेरोन पुरुषों के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, प्रजनन कार्य, शारीरिक कल्याण और मानसिक जीवन शक्ति को प्रभावित करता है। इसलिए संपूर्ण स्वास्थ्य और जीवन की उच्च गुणवत्ता के लिए टेस्टोस्टेरोन का संतुलित स्तर को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। जिसके लिए टेस्टोस्टेरोन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण तत्यों की जानकारी होना अति आवश्यक है, जैसे इसे प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं, इसका हमारे शरीर पर क्या प्रभाव हो सकता है, और इससे जुड़ी भ्रांतियां कौन से हैं।

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